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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

काकासे मिली होगी। काका खूब काम करनेकी उम्मीदसे आये हैं।[१] वे सफल हों।

बापूके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]
बापुना पत्रो - ४ : मणिबहेन पटेलने

३२९. पत्र : छगनलाल जोशीको

शिमोगा
श्रावण कृष्ण २ [ १५ अगस्त, १९२७][२]

भाईश्री छगनलाल जोशी,

इसके साथ भाई भणसालीके पत्र भेज रहा हूँ । मैंने उन्हें जो तार[३] और पत्र भेजे थे, वे तुमने देखे होंगे। इन पत्रोंको तुम स्वयं और मण्डलके अन्य सदस्य ध्यानसे पढ़ लें और उनपर विचार करें। पत्रोंपर विचार करनेके बाद उन्हें भाई भणसाली- को वापस कर देना। मुझे लिखा हुआ पत्र दफ्तरकी फाइलमें रख देना या मुझे वापस भेज देना ।

इस बातपर खूब तटस्थ भावसे विचार करना । मेरा ऐसा विश्वास है कि इस पत्रसे पूर्वके अपने पत्रोंमें भाई भणसालीने मेरे वहाँ लौटनेतक प्रतीक्षा करनेका जो वचन दिया था उसपर वे कायम रहेंगे। फिर भी हमें भविष्यके लिए इस बातपर विचार कर लेना चाहिए। मेरी राय है कि हम भाई भणसालीको इजाजत न दें। किन्तु इजाजत न मिलनेपर भी यदि वे उपवास करें तो हम उसे सहन कर लें। आश्रम में हम ऐसी बहुत-सी बातें सहन करते ही हैं जिनके बारेमें यदि कोई इजाजत माँगने आये तो हम नहीं देंगे। लेकिन इनके सिवा ऐसी कई बातें हो सकती हैं जिनकी हम न तो इजाजत दे सकते हैं और न जिन्हें हम सहन कर सकते हैं । यह उपवासकी बात किस श्रेणी में रखी जाये, इसपर विचार करना है। अब तुम सब इस मुद्देपर विचार करना और जो उचित लगे सो करना । मैं यहाँसे तुम्हारा मार्गदर्शन नहीं कर सकता। क्योंकि इसके लिए मुझे पहले भाई भणसालीसे बात करनी चाहिए और वे जो कुछ कहते हैं उसका अपने मनपर असर होने देना चाहिए। तुम जो भी निर्णय करो उससे पहले भाई भणसालीके साथ अलगसे और मण्डलके सामने बातचीत तो करना ही । लीलाबहन के मनके गहरे से गहरे विचार जान लेना और मेरे साथ पत्र-

  1. गुजरात बादसे तबाह हो गया था । तभी वि. झ. पटेल नडियाद आये थे, जहाँ से उन्होंने बाढ़ग्रस्त इलाकों का दौरा किया था ।
  2. गांधीजी सन् १९२७ में इस तारीखको शिमोगा में थे ।
  3. १३ अगस्त १९२७ का ।