पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/४२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८७
पत्र : छगनलाल जोशीको

व्यवहार करना चाहो तो करना । इस सम्बन्धमें निर्णय करनेमें जरा भी उतावली मत करना। भाई भणसाली अपने आजके पत्रके निश्चयपर दृढ़ न रह सकें और क्योंकि मैंने इस प्रश्नपर मण्डलमें चर्चा करनेकी बात कही है इसलिए यदि तुम मण्डलसे बातचीत करने के बाद मुझे अपनी राय लिखो और यदि वे मेरे आनेके पहले ही मण्डलका निर्णय माँगें तो तुम्हें यह निर्णय दे देना होगा । परन्तु यह जरूरी है कि वे मण्डलकी सुविधाका पूरा ध्यान रखें। में मानता हूँ कि इस प्रश्नका निर्णय मण्डलके गैरहाजिर सदस्योंसे पूछे बिना भी नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि एक ओर तो धर्म यह कहता है कि भणसालीका कदम चाहे हमें अनुचित लगता हो फिर भी जबतक वह अनैतिक न हो तबतक हमें उन जैसे निर्मल मुमुक्षु और जिज्ञासुको [ अपने रास्ते पर] अपनी गति से चलने देना चाहिए, यानी उन्हें आश्रममें रहने देना चाहिए; दूसरी ओर हमारा धर्म यह कहता है कि उक्त कदम अनीतिपूर्ण न हो फिर भी यदि वह हमें अविचारपूर्ण और भयानक मालूम हो तो शायद हमारा कर्त्तव्य यही होगा कि हम उन्हें आश्रम में वैसा न करने दें। मतलब यह कि हमें आश्रम में समानधर्मी लोगोंको एकत्रित करने और उन्हें व्यक्तिगत स्वतन्त्रता देने, इन दो बातोंका मिलन-बिन्दु ढूंढ़ निकालना है । और यह ऐसा काम है जो उतावली में नहीं किया जा सकता । भाई भणसालीको अपनी कठिनाइयाँ समझाना और उनसे अनुरोध करना कि वे जिस 'दर्शन' के लिए इतने उत्सुक हैं उसे सुलभ बनानेके लिए ही वे हमारे इन शुभ प्रयत्नोंका आदर करें। मुझे इस विषय में समय-समय पर खबर देते रहना और जरूरी लगे तो तार भी दे देना ।

लाहौरवाले बाबा मोहनलाल वहाँ हों और चुपचाप तथा सच्चे मनसे मजदूरी करते हों तो उन्हें मजदूरी करते रहने देना और मेरे आश्रम आनेतक रहने देना । पर यह तो मेरी राय है। उनका काम देखने अथवा आश्रमकी व्यवस्थासे सम्बन्धित दूसरी बातोंका विचार करने पर तुम्हें लगे कि उन्हें नहीं रखा जा सकता तो उन्हें छुट्टी दे देना। इसके साथका पत्र उन्हें दे देना ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (एस० एन० १२९६५) की फोटो नकलसे ।