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३३०. पत्र : बालकृष्णको

१५ अगस्त, १९२७

चि० बालकृष्ण,

आज तो मैं तुम्हें लिखे बिना नहीं रह सकता ।

तुम्हारी विचारधारा या कार्यधाराके बीच में पड़ना मुझे अच्छा नहीं लगता क्योंकि तुम अपने विचारोंको बहुत सूक्ष्मतापूर्वक स्थिर करते हो । किन्तु अपने विचारोंका उपस्थापन सूक्ष्मतापूर्वक करनेवाले व्यक्ति के लिए भी कभी-कभी बड़ोंका अनुभव सहायक होता है । ऐसी सहायता करनेकी इच्छासे कभी-कभी तुम्हारे साथ कुछ चर्चा कर लेता हूँ । मुझे लगता है कि अपने चरित्रका निर्माण करनेके लिए हमें समाज में रहने की आवश्यकता होती है और उसकी सिद्धिके प्रयत्न में अपने अग्रणियोंका ताप भी सहन करना पड़ता है । सिद्धान्त को जाननेवाले व्यक्ति के समक्ष नित्य नये सिद्धान्त उपस्थित नहीं होते। हाँ, नित्य नये धर्मसंकट अवश्य उपस्थित होते हैं । इन दोमें भेद है, उसपर विचार करना । जब धर्मसंकट उपस्थित होता है तभी सिपाही अपने नेताकी आज्ञाका पालन करता है और अपनी बुद्धिको एक ओर रख देता है । जो व्यक्ति हमेशा अपनी बुद्धिका प्रयोग करनेका आग्रह करता है उसकी बुद्धि आत्मदर्शन में आवरणरूप सिद्ध होती है। जहाँ नेता जान-बूझकर अनीतिका आचरण न कर रहा हो वहाँ उसकी बुद्धिको स्वीकार कर लेनेंमें अहिंसा है। अहिंसा आम्र-तरुसे भी अधिक नम्र है । कहा जाता है कि आमका वृक्ष जब फलता है तब वह झुक जाता है । अहिंसा जिस समय सम्पूर्ण रूपसे फलती है उस समय वह शून्यवत् व्यवहार करती है । ऐसा अहिंसक व्यक्ति अपनी ही बातपर अड़ने और अपनी बात मनवानेका प्रयत्न करनेके बजाय सबको अपनी-अपनी बात सही सिद्ध कर दिखानेकी सुविधा देता है। इसीलिए शास्त्रकारने[१] कहा है : अहिंसाः प्रतिष्ठायां तत्सन्निधी वैरत्यागः । शून्य से कौन वैर करेगा और कैसे करेगा ?

मगनलालके कैदी बनने में तुम कुछ खोओगे नहीं । मुमकिन है, वह भूल करे और उसके आदेश भूलभरे हों। किन्तु उनका पालन करते हुए भी तुम उन्नति करोगे और मगनलाल भी उन्नति करेगा। क्योंकि वैसा करके हम एक नैतिक सिद्धान्तका आचरण कर रहे हैं। तुम्हारा उसके अधीन हो जाना उसकी भूल सुधारनेका एक साधन सिद्ध होगा । अपने सम्बन्धमें तो मैंने यह बात कई बार देखी है । मैंने स्वयं अपने साथियोंकी अधीनता स्वीकार करके उनकी भूलें सुधारी हैं और मेरी अधीनता स्वीकार करके मेरे साथी तो प्रतिदिन अपनी न जाने कितनी भूलें सुधारते होंगे। किन्तु यदि वे रोज- रोज मुझे मेरी भूलोंका पृथक्करण करके दिखायें और इस तरह मुझे परेशान करें तो उनकी और मेरी, दोनोंकी आज क्या स्थिति हो ?

  1. पतन्जलि ।