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पत्र : रामदास गांधीको

इस पत्रपर उतावलीमें विचार करके मेरे पास न दौड़े आना। मैं चाहता हूँ और तुमसे यह माँगता भी हूँ कि तुम शान्त हो जाओ ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी |
सौजन्य : नारायण देसाई

३३१. पत्र : रामदास गांधीको

१५ अगस्त, १९२७

चि० रामदास,

ये प्रलय हमें सावधान करनेके लिए आते हैं । अन्तिम महाप्रलय तो होगा ही; इसमें कोई शंका नहीं है । जगत्की माया ऐसी है कि मनुष्य अपने समस्त दुःखोंको भूल जाते हैं। इसमें कुछ लाभ तो है पर विजयी तो वही होता है जो ऐसी विपत्तियों- को दृष्टिमें रखकर अपनी ही नहीं जगत्की क्षणभंगुरताका विचार कर निर्लिप्त भावसे जीवन व्यतीत करता है। इसी जीतमें पुरुषार्थ है । अच्छी तरह सोचें तो हम सबको मृत्युका दंड तो जन्मसे मिल चुकता है । फिर भी क्या कारण है कि बूढ़े, जवान और बालक सभी लोग भोग-विलास में डूबे रहते हैं ? यह तो प्रत्यक्ष ही है फिर भी हम अपने-आपसे यह सवाल निरन्तर पूछते रहें और ऐसी बाढ़ जैसी विपत्तियोंके समय तो और भी व्याकुल होकर पूछें। इस प्रकार पूछते-पूछते शायद किसी दिन हृदय में उसका उत्तर अंकुरित हो उठेगा। बुद्धि तो आज भी उत्तर दे रही है । है नर राग-मात्रका त्याग कर; परन्तु जबतक हृदयका समर्थन न मिले तबतक बुद्धि बेचारी लाचार ही है ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी।
सौजन्य : नारायण देसाई