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३३२. पत्र : देवेश्वर सिद्धान्तालंकारको

स्थायी पता: बंगलोर
१६ अगस्त, १९२७

प्रिय मित्र,

आपके विस्तृत पत्र और आपके लेखोंकी छपी हुई प्रतिलिपियोंके लिए धन्यवाद । मैं आपके लेखोंको फिरसे पढ़नेका समय निकालूंगा ।

अंग्रेजीमें आपका लिखना मुझे पसन्द आयेगा । पता नहीं, मैंने अपने पिछले पत्रमें[१] आपको लिखा था या नहीं कि अंग्रेजीमें लेख में अपने लिए नहीं बल्कि अपने उन मुसलमान और अन्य मित्रोंके लिए चाहता हूँ जो 'कुरान शरीफ' और इस्लामकी अच्छी जानकारी रखनेका दावा करते हैं । 'कुरान' के अपने अध्ययनको में किसी भी तरह गहन या पाण्डित्यपूर्ण नहीं मानता। वह तो मैंने सिर्फ अपने सन्तोषके लिए किया है।

लगता है कि आपके विचारमें वैदिक कालमें 'दस्यु' शब्दका जो अर्थ लगाया जाता था, वह ठीक वही नहीं था जो इस्लाममें 'काफिर' शब्दका लगाया जाता है । प्राचीन इतिहासको छोड़िए, मैं चाहता हूँ कि आप वर्तमान इतिहासको देखें, जो आज हमारे सामने बन रहा है । क्या मुसलमानोंको आज हजारों हिन्दू शत्रु नहीं समझते, ऐसे शत्रु, जिनका या तो धर्म-परिवर्तन किया जाये या फिर उनको नेस्तनाबूद कर दिया जाये ? क्या अंग्रेज लोगोंको अनेक सुसंस्कृत भारतीय दुष्ट मानकर उनसे घृणा नहीं करते ? यदि आज कोई अनुदार व्यक्ति हमारे और अंग्रेजोंके सम्बन्धोंका वर्णन करते हुए एक पाण्डित्यपूर्ण प्रबन्ध लिखे, तो क्या वह अंग्रेजोंको ऐसे दस्यु या आततायी नहीं बतायेगा जिनको देखते ही समाप्त कर देना चाहिए? और यदि वह प्रबन्ध कालके उलट-फेरका शिकार न बने और बादमें उसे धार्मिक साहित्य में शामिल कर लिया जाये, तो क्या आगे आनेवाली पीढ़ियोंके भी वही भूल करनेकी आशंका नहीं है जो आज हम कर रहे हैं ? क्या ऐसी सम्भावना नहीं है कि वे आजके इन 'दस्युओं' और ‘आततायियों' को राजनीतिक शोषक नहीं, बल्कि सचमुच दुष्ट जन समझें, और उसी अर्थ में दुष्ट समझें जो अर्थ इस शब्दको आप आज दे रहे हैं? या आप आज भी मानते हैं कि समूची अंग्रेज जाति सचमुच दुष्ट है ? एक और उदाहरण लीजिए । असहयोग आन्दोलन के प्रणेताके नाते मैं जानता हूँ कि अनेक तथाकथित असहयोगी लोग सरकारके साथ सहयोग करनेवालोंसे इस तरह घृणा करते हैं जैसे वे सचमुच दुष्ट राक्षस हों; और यदि उनकी चलती तो वे इन सहयोगियोंको चीरकर रख देते, उन्हें खत्म कर देते । अब मान लीजिए कि मैंने ऊपर जिस प्रकारके प्रबन्ध-लेखकका जिक्र किया है, उसी प्रकारका कोई असहयोगी विद्वान् कोई प्रबन्ध लिखता है, जाहिर है कि वह सहयोगियोंको दुष्ट प्रकृतिके व्यक्तियोंके रूपमें चित्रित करेगा । तब आप उस

  1. देखिए खण्ड ३३, पृष्ठ ३८६-८८ ।