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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसलिए जबतक मुझे ऐसा माननेका कोई कारण नहीं मिलता कि 'नवजीवन' में प्रकाशित विवरण गलत है तबतक तो मुझे उसे सत्य मानकर ही चलना चाहिए। इसलिए मैं गुजरातको और गुजरातियोंको उनके इस साहसपर बधाई देता हूँ । बल्कि क्षणभरके लिए तो यह विचार भी आता है कि जिस बाढ़ के कारण गुजरातकी जनताके सात्त्विक गुणोंका ऐसा सुन्दर दर्शन सुलभ हो सका उस बाढ़का आना एक दृष्टिसे शुभ ही हुआ ।

ऐसी बातें आती ही रहती हैं; आपत्तियाँ आती-जाती रहेंगी; धन-सम्पत्ति आज है और कल नहीं है; घर-द्वार बाग-बगीचे मनुष्य बनाता है और वे मिट जाते हैं। तो उनका नाश हो जानेपर उन्हें फिर बनाता है। इसलिए इसके कारण जो दुःख हमें भोगना पड़ा है वह तो हम भूल ही जायेंगे ।

किन्तु गुजरातने इस अवसरपर अपने में जिन गुणोंका दर्शन किया है यदि वह उन्हें भूल गया तो? वीरता आदि गुणोंके क्षणिक दर्शन के, श्मशान-वैराग्यके उदाहरण तो मिलते ही रहते हैं । यदि गुजरातियों के ये गुण भी श्मशान-वैराग्यकी भाँति क्षणिक सिद्ध हुए तो बाढ़की शिक्षा बेकार हो गई कही जायेगी ।

मैं चाहूँगा कि गुजरात के स्त्री-पुरुष इस बातको ध्यान में रखें और सावधान रहें । यह तो हमने देख लिया कि हमारी जनता में कितनी वीरता, सहनशीलता, प्रेम आदि है। अब हमें उसके इन गुणोंको स्थायी करनेका प्रयत्न करना चाहिए। हिन्दू और मुसलमान भाइयोंकी तरह गले मिलें । ऊँची जातिवालोंने दलितों और अस्पृश्योंको अपने कुटुम्बियोंकी तरह अपने घरोंमें शरण दी और उनकी सहायता की। यदि यह पाठ हम ऐसा मानकर भूल जायें कि यह तो आपद्-धर्म था तो हम जहाँ थे वहीं रह जायेंगे और बाढ़ के रूपमें इन दिनों हमने जो प्रसव वेदना सही वह व्यर्थ सिद्ध होगी । ऐसी बड़ी आपत्तियाँ प्रवस-वेदनाके तुल्य ही होती हैं। जिस तरह प्रसव-वेद- नाके बाद नया जन्म होता है उसी प्रकार इन आपत्तियोंसे भी होना चाहिए। और जबतक वह वास्तविक नया जन्म नहीं होता तबतक ये आपत्तियाँ आती ही रहेंगी । गु

जरातने आज जो किया है उसे में शुद्ध स्वराज्य कहना चाहता हूँ । गुजरातकी जनता में आज जो गुण प्रगट हुए हैं वे यदि हमेशा के लिए बने रह जायें तो मैं कहूँगा कि गुजरातने स्वराज्य प्राप्त करनेकी योग्यता और शक्ति, दोनों ही, पा लीं।

इस बाढ़ के कारण जो विनाश हुआ वह सामान्य नहीं था । उसके अत्याचारोंकी तुलनामें डायरके अत्याचार भी फीके मालूम होते हैं। डायरशाहीकी ज्वालामें तो हजार- बारह सौ आदमी ही हताहत हुए थे। इस बाढ़में कितनोंके प्राण गये और कितनी धन-सम्पत्तिका नाश हुआ इसका अभी कोई हिसाब ही नहीं दिया जा सकता । किन्तु हमने उसे गालियाँ नहीं दीं। हमने उसके खिलाफ सत्याग्रह किया, आत्मशुद्धि की, हम रचनात्मक कार्योंमें जुट गये । हमने हिन्दू-मुसलमान एकता साधी, अस्पृश्यताका बहि- ष्कार किया, स्वाश्रयी बने और अपने भाई-बहनोंके लिए अपना धन खुले हाथों लुटाया । हमने किसी नेताकी राह नहीं देखी। हमने शत्रुको पीठ नहीं दिखाई, हम उसके सामने छाती खोलकर डटे रहे और अविचलित मनसे रक्षा कार्यों में लग गये। यदि हम उससे डर