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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह सारा इतिहास देकर मैं अपना बचाव नहीं कर रहा हूँ । सेवकको अपना बचाव करना ही नहीं चाहिए। इसके सिवा मेरी तबीयत इतनी नाजुक भी नहीं है कि मैं वहाँ आ ही न सकूँ। वैसे, वह नाजुक है जरूर। खेड़ा आन्दोलन के[१] दिनों में मैं अपने शरीर से जितना काम ले सका था आज वह उसका दशांश भी नहीं कर सकता । मस्तिष्क तो बिलकुल निकम्मा हो गया है। जरा-सा काम करते ही थक जाता है। बिस्तर में लेटे रहना पड़ता है। किन्तु जहाँ आग लगी हो वहाँ बीमार को भी जान जोखिम में डालकर जाना चाहिए और अगर वह पानीका घड़ा उठा सकता हो तो उसे पानी डालना चाहिए। और अगर उसकी हालत ऐसी हो कि वह बैठा-बैठा केवल दूसरोंको हुक्म ही दे सकता हो तो उसे वहाँ डोलीमें चढ़कर पहुँचना चाहिए। यानी जो भी हो दावानलको बुझाने में मदद करने के लिए उसे हाजिर अवश्य होना चाहिए।

किन्तु मैं इस घटनासे अपने साथियोंको एक पाठ देना चाहता हूँ और उन्हें सावधान कर देना चाहता हूँ। गुजरात में हम लोग एक अलिखित और अकथित नियमको मानते आये हैं। वह नियम यह है कि जिसे जो काम सौंपा जाये उसके उस काम में दूसरोंको उसकी इच्छा अथवा अनुमतिके बिना बीचमें नहीं पड़ना चाहिए। और उस कार्यकर्त्तापर पूरा विश्वास रखना चाहिए। अलबत्ता, जब उसपर हमारा विश्वास न रहे तब उसे निःसंकोच उसके स्थान से हटा देना चाहिए। गुजरात के हमारे नेता वल्लभभाई हैं। मेरी स्थिति एक आदरणीय बुजुर्गकी जरूर है किन्तु जहाँतक गुजरात के कामका सवाल है मुझे वल्लभभाईकी आज्ञामें चलना चाहिए। हम लोग गुजरात में आजतक जो कुछ कर सके हैं वह इसी तरह कर सके हैं। ऐसा करके हमने अनुशासन सीखा है, अपनी शक्ति में वृद्धि की और जो काम किया जाना है उसका हम समु-चित विभाजन भी कर सके हैं।

किन्तु वल्लभभाईने जो कुछ लिखा उसके अलावा भी मेरा यह खयाल था कि इस बार गुजरात में मेरी हाजिरीकी आवश्यकता नहीं है । वल्लभभाईकी सेवा-शक्ति- पर मेरा अचल विश्वास है । खेड़ा युद्धके बाद से उन्होंने बराबर मेरा साथ दिया है । उनके त्यागसे किसीका त्याग बड़ा नहीं है । अपनी बुद्धि-शक्तिका लाभ उन्होंने गुजरातको अनेक बार दिया है। संकट निवारणका कार्य वे इसके पहले भी कर चुके हैं। ऐसी स्थिति में मैं वहाँ आकर और क्या कर लेता ?

इसके सिवा यदि मैं वहाँ इसी कामके लिए आता तो वल्लभभाई अपने स्वभावके अनुसार मुझसे मार्गदर्शन की आशा रखते तथा स्वतन्त्र रूपसे अपनी कार्यशक्तिका उपयोग न करते । ऐसे अवसरपर इस बातको में बहुत बड़ी हानि समझता हूँ। मैं वहाँ नया-नया आऊँ और हर काममें गड़बड़ करने लग जाऊँ तो उससे केवल मेरा अज्ञान और अभिमान ही प्रकट होगा ।

इसके सिवा मैं यहाँ बेकार भी नहीं बैठा हूँ। अपनी अल्प बुद्धिके अनुसार मैं यहाँ इन पाँच दिनोंकी वर्षा और बाढ़से भी ज्यादा भयंकर जो व्याधि केवल गुज- रातको ही नहीं बल्कि सारे देशको लगी हुई है उसे दूर करनेमें लगा हुआ हूँ । इस

  1. १. देखिए खण्ड १४ ।