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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
साथियों से

मुझे आशा है कि मैंने ऊपर जो कुछ कहा है मेरे साथी उसे समझ गये होंगे । किन्तु अभी उनसे थोड़ा-सा और कहना है।

१. मैं मान लेता हूँ कि इस मौकेपर कोई भी कार्यकर्त्ता अपने मनमें किसी प्रकारका अभिमान नहीं आने देगा; वह निःसंकोच भावसे दूसरोंकी मदद करेगा और उनकी मदद लेगा ।

२. जो भी व्यक्ति ऐसे समय नाम कमानेकी दृष्टिसे काम करेगा वह पापका भागी होगा ।

३. विभिन्न संस्थाओंके बीच इस समय पूरा सहयोग होना चाहिए ।

४. सरकार जहाँ हमारी शर्तों पर मदद करना चाहे वहाँ उसकी मदद लेने में बिलकुल संकोच नहीं करना चाहिए। तात्त्विक दृष्टिसे ऐसा करनेमें असहयोगके सिद्धान्तका भंग भी नहीं होता। जहाँ भक्ति प्रधान हो वहाँ तात्विक बारीकियाँ निकालना नीरस मालूम होना चाहिए। यदि सरकार अपना पैसा सदुपयोग करनेके लिए हमें देती हो तो वह हमें निस्संकोच स्वीकार कर लेना चाहिए और माँगना भी चाहिए।

५. संस्थाका अस्तित्व लोगोंकी सेवाके लिए है, लोग संस्थाकी सेवाके लिए नहीं हैं - यह बात कदापि नहीं भूलनी चाहिए।

६. मैं देखता हूँ कि इसमें तीन संस्थाएँ अलग-अलग काम कर रही हैं - वल्लभ- भाई के नेतृत्व में, अमृतलाल सेठके नेतृत्वमें और श्री देवधरके नेतृत्वमें । में चाहूँगा कि उनमें से किसीका भी कार्यक्षेत्र दूसरेके क्षेत्रमें न जा पहुँचे। वे आपस में एक-दूसरेकी मदद करें और एक-दूसरे के निकट सम्बन्धमें रहें। जिन लोगोंने अभीतक कोई काम हाथमें न लिया हो वे जो कार्यक्षेत्र उनके निकट हो या जहाँ जाकर काम करनेकी उनकी इच्छा होती हो वहाँ जायें और सम्बन्धित संस्थासे अपने लिए काम माँग लें । उसे इस प्रसंगकी भयंकरताका भान नहीं हुआ है इस कारण या अपने स्वभावकी विषमताके कारण या झूठे अभिमान के कारण यदि कोई व्यक्ति इस सेवा-कार्यसे अलग रहेगा और जनताको अपनी सेवासे वंचित रखेगा तो वह अपनी प्रतिष्ठाका अपने हाथों हनन करेगा और उसे अपने हाथों खोयेगा ।

७. वर्तमान संस्थाओंका अनादर करके नई संस्था खड़ी करनेकी कोशिश भयं कर मानी जायेगी। इस समय तो हर एकको जहाँ उसका ठीक उपयोग हो सकता है। वहाँ जुट जाना चाहिए ।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, २१-८-१९२७