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३३६. भाषण : भद्रावतीमें[१]

१८ अगस्त, १९२७

आपका कृपापूर्ण निमन्त्रण, आपकी भेंट की हुई थैली और लोहेकी मंजूषा देख- कर मुझे अपनी जमशेदपुर यात्राकी बड़ी याद आ रही है । परन्तु यहाँ मुझे एक चीज जो सबसे अच्छी लगी वह यह है कि यह सारी योजना आत्म-निर्भर है। इसमें कहींसे कोई बाहरी सहायता नहीं ली गई है। इसकी शुरुआत करनेवाले सज्जन मैसूरवासी हैं, इसमें काम करनेवाले अधिकांश कर्मचारी और मजदूर भी मैसूरके हैं, और यदि सब मैसूरके नहीं तो दक्षिण भारतके तो हैं ही । यह एक ऐसी चीज है जिसपर आप और समूचा भारत उचित गर्व कर सकता है। कुछ क्षेत्रोंमें कहा जाता है कि भारतके पास बुद्धि तो है पर व्यावहारिकताकी प्रतिभा नहीं है । आपने ऐसी धारणाको गलत सिद्ध कर दिया है। मुझे आशा है और ईश्वरसे मेरी यही प्रार्थना है कि लोहे का यह कारखाना दिन दूनी तरक्की करे और इससे राज्यकी समृद्धि हो । खनिज संसा- धनोंसे सम्पन्न इस देशमें ऐसे उपक्रमोंका अपना एक स्थान है और हमारा कर्त्तव्य है कि हम इन संसाधनोंको जनताके कल्याणके लिए प्रयुक्त करें। अफसोस कि सर एम. विश्वेश्वरैया यहाँ मौजूद नहीं हैं, परन्तु हार्दिक स्वागत के उनके तारसे सिद्ध है कि उनकी भावना यहाँ विद्यमान है। अब मैं इस कारखाने में काम करनेवाले आप लोगोंसे दो शब्द कहूँगा । जमशेदपुरमें भी मैंने उनसे इसी तरह बात की थी। मैं कह चुका हूँ कि देशको आपके इस उपक्रमकी जरूरत है । परन्तु देशको उस कामकी और भी ज्यादा जरूरत है, जिसके लिए आपने मुझे थैली भेंट की है। इस तरहके उपक्रम मध्यमवर्ग और धनिकोंके लिए जरूरी हैं । परन्तु आप देशके असहाय गरीबोंकी उपेक्षा तो नहीं कर सकते। आप दो तरहसे उनकी सहायता कर सकते हैं - खादी के लिए चन्दा देकर और स्वयं खादी पहनकर | यदि आपके तैयार किये लोहेको खरीदनेवाले न हों तो आपका कारखाना बन्द हो जायेगा; ठीक इसी प्रकार यदि आप गरीबोंकी तैयार की हुई खादी पहनेंगे ही नहीं तो खादीका आन्दोलन भी कोई तरक्की नहीं कर सकेगा । पूँजीपतियोंसे भी मेरा अनुरोध है कि अपने उपक्रमको चलाते हुए गरीबोंकी उपेक्षा न करें । अन्तमें, मैं आशा करता हूँ कि अधिकारियों और कर्मचारियोंके बीच मैत्रीपूर्ण स्नेह-सम्बन्ध हैं और शराबखानों तथा जुए के अड्डोंको आपके पास भी नहीं फटकने दिया जाता ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १-९-१९२७

  1. महादेव देसाईके " साप्ताहिक पत्र " से ।