पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/४३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०१
पत्र : एस० डी० नाडकर्णीको

राशिकी पाई-पाई बचाई जानी चाहिए। समितिको चाहिए कि उक्त राशिको देशकी मूक गरीब जनताकी भलाईके लिए खर्च करे ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, १९-८-१९२७

३३८. पत्र : एस० डी० नाडकर्णीको

स्थायी पता: बंगलोर
१९ अगस्त, १९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला, साथमें अस्पृश्यतापर बहुत सावधानीसे लिखे लेख भी । मैंने तो आशा की थी कि ये लेख, आम तौरपर आपके लेख जिस स्तर के होते हैं, उसी स्तरके होंगे। मैंने उन्हें तत्काल टाइप करनेके लिए दे दिया, ताकि मैं टाइप की हुई प्रतियाँ, आप कोई संशोधन करना चाहें तो, उसके लिए आपको भेज सकूँ। लेकिन, आपको भेजने से पहले मैंने उन्हें एक बार पढ़ लेनेकी बात सोची रखी थी। अब उन्हें पढ़ भी चुका हूँ। जैसा कि मैंने कहा, वे बहुत सावधानीसे लिखे गये हैं, लेकिन उनमें न कोई मौलिकता है और न तर्ककी वैसी संश्लिष्ट श्रृंखला ही जैसी कि मुझे आपके लेखों में आम तौरपर देखनेको मिली है। इनकी विस्तृत समालोचना करनेके लिए मेरे पास समय नहीं है; लेकिन यहाँ में अस्पृश्यताकी आपकी परिभाषाका दोष बता देना चाहता हूँ। कमसे कम मुझे तो वह बहुत बोझिल लगती है ।

अस्पृश्यता अमुक व्यक्तियोंसे बचकर रहना नहीं है; उसका मतलब तो जन्मसे जुड़ी कुछ बातोंके कारण उनका अस्पृश्य होना है। प्रारम्भिक अनुच्छेदोंमें कही गई बातें उपशीर्षकसे सर्वथा संगत थीं, लेकिन आगेके अनुच्छेदोंमें इसका निर्वाह नहीं हो पाया है।

दूसरे लेखमें जो उद्धरण दिये गये हैं, वे अस्पृश्यताका खण्डन करते नहीं जान पड़ते, बल्कि उसके अतिशय पालनपर प्रहार करते लगते हैं। अगर आपको यहाँ शास्त्रीय बातोंकी चर्चा करनी ही हो तो जरा अधिक गहरा विवेचन करना सचमुच आवश्यक है। अस्पृश्यताकी भावनाका उदय कब हुआ और उसकी व्याप्ति क्या है ? पता नहीं, इस विषयपर लिखा पंडित सातवलेकरका प्रबन्ध आपने पढ़ा है या नहीं । एक तरहसे जानने लायक सभी बातें उसमें काफी हदतक आ गई हैं।

अगर आप इस विषयपर 'यंग इंडिया' में पाण्डित्यपूर्ण शैली में कुछ लिखना चाहें तो मैं चाहूँगा कि आप कुछ समय निकालकर इसे और भी ध्यान से पढ़िए और कुछ मौलिक चीज दीजिए या कोई ऐसी लोकप्रिय तथा मौलिक चीज लिखिए जिसमें आज यह प्रथा जिस रूप में प्रचलित है, उसकी उग्रतापर प्रहार किया गया हो - मतलब यह कि अगर यह मान भी लिया जाये कि विशुद्ध हिन्दू धर्म में अस्पृश्यताके

३४-२६