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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दे सकी, यह बंसड़ा राज्य के लिए गौरवकी बात है। लेकिन, महाविभव जबतक शराब- के व्यापारसे होनेवाली आयको जरूरी मानते हैं, तबतक तो वे अपनी प्रजाके कल्याणके लिए जो कुछ कर रहे हैं, वह सब वास्तवमें व्यर्थ ही हो जाता है। इसमें सन्देह नहीं कि बंसडाकी सीमापर जो तीन राज्य - अर्थात् अंग्रेजी राज्य, गायकवाड़ोंका राज्य और धरमपुर राज्य - हैं उनमें मद्य-निषेध लागू न रहनेके कारण बंसडाके लिए मद्य-निषेधकी नीतिको सफल बना पाना कठिन है। लेकिन, बड़ी कुर्बानी दिये बिना और कोई बड़ा कदम उठाये बिना तो बड़े काम किये भी नहीं जा सकते। बंसडा न केवल पूर्ण मद्य-निषेधकी घोषणा करके सबको रास्ता दिखा सकता है, बल्कि इसके बाद वह पड़ोसी राज्यों में मद्य-निषेधके पक्षमें प्रचार और आन्दोलन भी कर सकता है। असली बात तो शरावसे प्राप्त होनेवाले राजस्वका त्याग करना है । यह शुभ प्रयत्न तो तत्काल इस निश्चयसे शुरू किया जा सकता है कि इससे प्राप्त राजस्वका उपयोग शराब पीनेकी आदी आदिम जातियोंके बीच इस कुटेवके खिलाफ जोरदार प्रचार करने के अलावा और किसी भी काममें, चाहे वह काम कितना ही अच्छा हो, नहीं किया जायेगा। क्योंकि, इसमें कोई सन्देह नहीं हो सकता कि जो राज्य सचमुच यह चाहेगा कि उसकी प्रजा इस कुटेबको छोड़ दे, वह इस चीजको सिर्फ कानूनन असम्भव बनाकर ही सन्तुष्ट नहीं हो जायेगा, बल्कि उस कुटेवके कारणका पता लगाने और लोगोंको इसकी बुराइयाँ बताकर इसे छोड़ देने को समझानेका प्रयत्न भी करेगा । और फिर कोई राज्य शराब से प्राप्त राजस्व से वंचित हो जानेके कारण घाटमें रहे, यह भी जरूरी नहीं है । अगर मद्य-निषेधकी नीति किसी ऐसे रचनात्मक कार्यके साथ-साथ, जैसे कार्यका सुझाव मैंने दिया है,[१] चलाई जाये तो उसका अनिवार्य परि- णाम यही होगा कि प्रजा अधिक समृद्ध होगी और इसलिए राज्य भी । भारत में पूर्ण मद्य-निषेधकी नीतिको सफलतापूर्वक चला सकनेकी सबसे अधिक सम्भावना है, जिसका सीधा-सादा कारण यह है कि यहाँ शराबकी लतको प्रतिष्ठा या फैशनकी बात नहीं माना जाता और यह बुराई कुछ एक वर्गोंके ही लोगोंतक सीमित है ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-६-१९९२७}}

  1. देखिए पिछले शीर्षकके अन्तर्गत " एक शुभ निश्चय " उपशीर्षक ।