३४१. पत्र : एन० सेतुरमणको
स्थायी पता : साबरमती आश्रम
१९ अगस्त, १९२७
प्रिय मित्र,
आपका पत्र मिला । में नहीं मानता कि पतिको अपनी पत्नीपर और माता- पिताको अपनी वयस्क सन्तानपर अपने विचार थोपनेका अधिकार है । लेकिन, जिन चीजोंमें खुद उसका विश्वास नहीं, उन चीजोंकी व्यवस्था पत्नी या सन्तानके लिए करना उसका कर्त्तव्य नहीं है । लेकिन अगर उसकी पत्नीके पास अपने साधन हों - और पति अथवा माता-पिता से मिले उपहारों और मायकेसे लाये पैसोंके रूपमें साधन तो उसके पास हो ही सकते हैं - तो उसे उस पैसेका जैसा चाहे वैसा उपयोग करनेका पूरा अधिकार है । जहाँतक छोटी उम्र के बच्चोंका सम्बन्ध है, में इस विषय में कोई सामान्य नियम बताने में असमर्थ हूँ कि पति-पत्नी में मतभेद होनेपर उन बच्चोंके जीवनका नियमन किसको करना चाहिए। शायद यह मामला दोनोंकी सुविधा-सहूलियत देखते हुए आपस में ही तय करनेका है। पारिवारिक सम्बन्धों का संचालन अन्ततः प्रेमके नियम के अनुसार ही होना चाहिए और पारस्परिक व्यवहार के सम्बन्धमें कोई स्पष्ट और कड़े नियम नहीं बनाये जा सकते । जो बात एक मामलेमें बिलकुल उचित हो सकती है, वही ऊपरसे देखने में अन्य सभी मामलोंके सम्बन्धमें पूरी तरह उचित नहीं भी हो सकती
हृदयसे आपका,
तिरुक्कन्नन गुडि
अंग्रेजी (एस० एन० १९८०३ ) की फोटो नकलसे ।