३४४. पत्र : वसुमती पंडितको
श्रावण बदी ८ [२० अगस्त, १९२७ ][१]
चि० वसुमती,
तुम्हारा पत्र मिल गया है। हरिभाईकी विधवा बहनकी उम्र क्या है और उसका स्वास्थ्य कैसा है ?वह कितनी पढ़ी हुई है आदि सारी जानकारी लिखना । भड़ींचसे कुसुमका पत्र आया था । लगता है कि उसका हाल ठीक है। भाई मृत्युंजयसे पढ़ना क्यों बन्द करना पड़ा ?
क्या तुमने गुजराती सीखना कुछ दिन पहले शुरू नहीं किया था ? उत्तमचन्दकी पत्नीको गुजरातीका कितना ज्ञान है ? अपनी सामर्थ्य से ज्यादा कुछ भी काम अपने हाथमें नहीं लेना चाहिए ।
तुम्हारी बाकी रह गई दैनन्दिनी मुझे चाहिए। उससे जो कुछ मुझे मिलता है वह पत्रों में नहीं मिलता ।
मेरी तबीयत ठीक है । २९ तारीखको मैसूरकी यात्रा समाप्त हो जायेगी ।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती (सी० डब्ल्यू० ५९२ ) से ।
सौजन्य : वसुमती पंडित
३४५. टिप्पणी : बेलूर मन्दिरको दर्शक-पुस्तिका में
२० अगस्त, १९२७
भारतीय स्थापत्यकला (तक्षणकला ? ) के इस वैभवके दर्शन करके में कृतार्थं हुआ । कितना अच्छा होता, यदि इस मन्दिरके दरवाजे तथाकथित अस्पृश्योंके लिए भी उसी प्रकार खुले रहते जिस प्रकार दूसरे हिन्दुओंके लिए खुले रहते हैं ।
[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २२-८-१९२७
- ↑ मैसूरके दौरेकी समाप्तिके आधारपर वर्ष निर्धारित किया गया है।