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३४६. भाषण : वेलूर मन्दिरमें[१]

२० अगस्त, १९२७

भारतीय कलाके इस अनुपम मन्दिरको देखकर कौन नहीं मुग्ध हो जायेगा ? लेकिन, दरिद्रनारायणके मुझ जैसे प्रतिनिधिको ऐसे दृष्टि-सुखसे दूर ही रहना चाहिए । मेरा सारा समय, सारी शक्ति केवल उनकी सेवाके लिए है, और मैं यह स्वीकार करूँगा कि यदि केशवदासने ५०० रुपयेकी थैलीका प्रलोभन न दिया होता तो मैं यहाँ न आता ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १-९-१९२७

३४७. भाषण : आरसीकेरेकी सार्वजनिक सभामें[२]

२० अगस्त, १९२७

हम नहीं जानते कि श्रीकृष्ण के जीवनका हमारे लिए क्या सन्देश है, हम 'गीता नहीं पढ़ते, हम अपने बच्चोंको 'गीता' पढ़ानेका कोई प्रयास नहीं करते । 'गीता' एक ऐसा दिव्य ग्रंथ है जिसे हर धार्मिक विश्वास, हर आयु और हर देशके व्यक्ति आदरपूर्वक पढ़ सकते हैं और अपने-अपने धर्मके सिद्धान्त उसमें पा सकते हैं । यदि हम हर जन्माष्टमी के दिन कृष्णका ध्यान करें और 'गीता' पाठ करें और उसकी सीखोंपर चलनेका संकल्प करें तो हमारी दशा ऐसी दयनीय नहीं रहेगी जैसी आज है । श्रीकृष्णने जीवन-भर जनताकी सेवा की। वे जनताके सच्चे सेवक थे । वे कुरुक्षेत्र में सेनाओंका संचालन भी कर सकते थे, पर उन्होंने अर्जुनका सारथी बनना ही पसन्द किया । उनका समूचा जीवन कर्मकी एक अविच्छिन्न 'गीता' ही था । उन्होंने घमण्डी दुर्योधन द्वारा भेंट किये गये मिष्टान्नको ठुकराकर विदुर द्वारा विनम्रतापूर्वक भेंट किया गया साग स्वीकार किया । कृष्ण बाल्यावस्था में गायें चराते थे और हम अब भी उनको गोपालके नामसे याद करते हैं। परन्तु उनके उपासकोंने, हम लोगोंने आज गो की बिलकुल उपेक्षा कर दी है। आदि कर्नाटक लोग तो गायका वध करते हैं और गोमांस खाते हैं। इसीसे हमारे यहाँ बच्चों तथा बीमारोंको भी गायका दूध नहीं मिल पाता । कृष्णके जीवन में निद्रा या निठल्लेपनका कोई स्थान नहीं था । उनकी सतत जागरूक दृष्टि विश्वपर रहती थी। परन्तु हम उनके वंशज अब काहिल बन

  1. महादेव देसाईके " साप्ताहिक पत्र " से ।
  2. महादेव देसाईके “ साप्ताहिक पत्र " से । सभाका आयोजन ट्रैवलर्स बंगलो में किया गया था।