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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर्मकी प्रेरणा है। ये वृत्तियाँ जबतक हमारे ऊपर हावी नहीं हो पातीं तबतक तो सब ठीक ही है। और स्वाभाविक ही है कि तुम जो कुछ हो, उसी रूप में में तुमको जानना - समझना चाहता हूँ, तभी तो तुम वह बन पाओगी जो तुमको बनना चाहिए।

हाँ, तुम वहाँ निश्चित अवधिसे एक दिन भी अधिक नहीं रहोगी, तबतक जितनी हिन्दी सीख चुकोगी उतनी ही ठीक है, बाकीकी फिक्र करनेकी जरूरत नहीं है । परन्तु मैं नहीं चाहता कि इस शेष अवधि में भी तुम अपने-आपको उसमें बुरी तरह खटाती रहो। यदि तुम हिन्दीकी पोथियोंको ताक में रख दो और निरायास जितनी हिन्दी सीख सकती हो, सीख लो, तो भी मैं ठीक ही समझँगा । हिन्दी सीखने में मनको परेशान नहीं करना है। हाँ, में चाहूँगा कि तुम उर्दू लिखना न भुला दो । परन्तु इन सब चीजोंके लिए अपने साथ जबरदस्ती मत करना ।

हाँ, विनोबा सचमुच असाधारण व्यक्ति हैं। उनका आँसुओंमें फूट पड़ना ईश्वरके साथ साक्षात्कारकी उनकी उत्कट लालसाका ही रूप है । जहाँतक तुमसे बने, उनसे मिलती-जुलती रहो और ऐसा प्रयत्न करती रहो जिससे वे अपने मनकी बात तुमसे कहें। तुमको बाद में कभी उनके निकट सम्पर्क में आनेका अवसर शायद न मिले। जो भी प्रश्न चाहो, उनसे पूछो ।

गंगूके बारे में चिन्ता मत करो। यही बहुत है कि वह अभीतक तुमसे मार्ग-दर्शन लेने को तैयार है। मुझे तो लगता है कि उसे बालुंजकरसे बिलकुल अलग रहकर अपने पैरों खड़े हो जाना चाहिए।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२६३ ) से । सौजन्य : मीराबहन