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पत्र : छगनलाल जोशीको

कारण वह नहीं है। उसका कारण तो सत्यका बार-बार भंग होना है। जो व्यक्ति सत्यका भंग करता है वह चाहे और बातों में अच्छा हो फिर भी उसे सत्याग्रहका आदर्श रखनेवाले आश्रम में नहीं रखा जा सकता। फिर आश्रम काफी हदतक सबका पोषण करता है। इसलिए जो व्यक्ति आश्रमकी सेवा नहीं कर सकता उसका पोषण करना हमारा धर्म नहीं है । ऐसा करनेका हमें अधिकार नहीं है । इसलिए इस निर्णयका एकमात्र कारण चि० काशीकी झूठ बोलनेकी वे गलतियाँ हैं जो सिद्ध हो चुकी हैं। पर तुम सब शांतिपूर्वक यही निर्णय कर सको तभी मेरी सलाहपर अमल करना। मुझे उतावली है भी और नहीं भी । उतावली नहीं है इसका कारण है कि ऐसे मामलों में पूरी तरह विवेक-बुद्धिसे काम लेना चाहिए। और इस हदतक उतावली है भी कि कोई निर्णय कर लेनेके बाद उसके अमलमें ढील करना अधर्म है । इस पत्रको कार्यवाहक मंडल जरूर पढ़े और समझे। अभी मुझसे पूछना हो तो पूछ लें। कोई निर्णय करनेके लिए मुझसे जो कुछ भी जाननेकी जरूरत हो उसे अवश्य पूछ लेना ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी |
सौजन्य : नारायण देसाई

३५२. पत्र : छगनलाल जोशीको

२२ अगस्त, १९२७

यह पत्र तुम्हारी सुविधाके लिए अलग से लिख रहा हूँ । तुम्हारा और मगनलालका अभीतक मेल नहीं हुआ यह बात दुःखपूर्ण है पर अनिवार्य है यह में समझ सकता हूँ । तुम दो बार स्पष्ट प्रतिज्ञा ले चुके हो इसलिए अब दोनों में से एक भी न वहाँसे जा सकता है और न अलग हो सकता है । अब तो तुम्हारे बीच विवाह-गाँठ अथवा आध्यात्मिक सम्बन्ध बन चुका है; उसे न तुम तोड़ सकते हो और न कोई और व्यक्ति ही उसे तोड़ सकता है । यह नैतिक बात है । यह अलग बात है कि मनुष्य नीति छोड़ दे और सभी बन्धनोंसे मुक्त हो जाये । इसलिए विचार इसी बातका करना है कि तुम्हारे सम्बन्ध किस प्रकार मधुर बनाये जा सकते हैं। हम सभी विवाहित हैं। हमें इसका विचार करना चाहिए कि विवाहित स्त्री-पुरुष आपस में किस प्रकार व्यवहार करते हैं। और इस मामलेमें वैसा ही व्यवहार करना चाहिए। मगनलाल लाल आँखें दिखाये तो तुम प्रेमपूर्वक बर्फके समान शान्त रहो। और जब तुम लाल आँखें दिखाओ तब मगनलाल भी वैसे ही शान्त रहे । परस्पर इस प्रकारका व्यवहार न कर सको तो जैसा बा ने किया था वैसा ही करो।[१]

  1. देखिए आत्मकथा, भाग ४, अध्याय १० ।