पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/४५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४१६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैंने बा को बाहर निकालनेके लिए दरवाजा खोला तो उसने 'शर्म करो' कहकर मुझे शर्मिन्दा कर दिया और बाहर जाने के लिए तैयार होनेपर भी वह पीछे हट आई । गोवर्धनभाईकी[१] कुमुदके[२] समान तुम यही रटो कि “ हम एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते " । बाद में तुम दोनोंमें जो प्रमादधन[३] होगा उसे ईश्वर मारेगा या किस प्रकार छुटकारा दिलायेगा यह तो वही जाने। वह तो नित्य नई कथा रचनेवाला है । इसलिए उसे गोवर्धनभाईका आश्रय लेनेकी जरूरत नहीं है। उसके ऊपर विश्वास रखो ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी ।
सौजन्य : नारायण देसाई

३५३. पत्र : गंगाबहनको

२२ अगस्त, १९२७

तुम्हारा पत्र मिला । काका साहबने भी तुम्हारा उनके नाम लिखा पत्र मुझे पढ़नेको दिया। मेरे साथ यात्रा करने और उसके साथ-साथ काका साहबकी सेवा करनेकी तुम्हारी इच्छाको मैं समझता हूँ पर उसे प्रोत्साहन नहीं दे सकता ।

१. काका साहबको इतनी सेवाकी जरूरत नहीं होनी चाहिए और तुम्हारे न होनेसे जो कमी रह जाती है वह चन्द्रशंकरको पूरी करनी चाहिए। ऐसा न हो सके तो काका साहब अपंग बन जायेंगे ।

२. बा को भी अगर सेवाकी जरूरत हो तो उसे आश्रम में जाना चाहिए। मेरी सेवा करनेवालेको सेवा करानेकी जरूरत हो तो उसकी सेवा, सेवा नहीं कही जा सकती और मुझे ऐसी सेवाका त्याग करना चाहिए ।

३. तुम्हें यात्रासे लाभके बदले हानि ही होगी। मेरे साथ तो भटकना पड़ेगा इसलिए तुम्हारा पढ़ना-लिखना नहीं हो सकेगा। यह बात सही है कि मेरे साथ किसी बहन के रहने से अच्छा रहेगा पर उसका अध्ययन पूरा हो चुका होना चाहिए। में देख रहा हूँ कि मणिबहन भी ज्यादा समय रहेगी तो उसका समय नष्ट होगा । उसकी पढ़ाई-लिखाईकी काफी हानि हुई है । मन-ही-मन उसकी इच्छा भी यहाँ रहनेकी थी। वह अभी छोटी है । कामके सिलसिले में आई थी इसलिए रहने दिया ।

तुम तो अपनी पढ़ाईमें तन्मय रहो । काका साहब कहीं रहने लगें तो अवश्य उनके साथ रहना, उनकी सेवा करना और उनसे सीखना । इस समय तुम संकोच छोड़कर जो पास में हैं और जिन्हें आता हो उनसे अक्षर ज्ञान प्राप्त करो। आत्मिक

  1. गोवर्धनराम माधवराम त्रिपाठी, सरस्वतीचन्द्र नामक गुजराती उपन्यासके लेखक ।
  2. सरस्वतीचन्द्र उपन्यासकी नायिका ।
  3. सरस्वतीचन्द्रको कथाका एक पात्र जिसके साथ कुमुदका विवाह हुआ था।