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३५५. पत्र : शारदाको[१]

श्रावण वदी १०, २२ अगस्त, १९२७

चि० शारदा,

तुम्हारा पत्र मिला । जिन्दगी कठिनाइयोंसे भरी हुई है। जिस प्रकार बुनकर सूतकी गुत्थियाँ सुलझाता है उसी प्रकार यदि हम इन कठिनाइयोंको सुलझा सकें तो ही हम जीवनको ठीकसे बन सकते हैं ।

तुम्हें समझना चाहिए कि मगनलाल या कार्यवाहक मण्डल तुम्हारे भाईको आश्रम में रखने से इनकार करते हैं तो वे ऐसा सोच-विचारकर ही कर रहे हैं और ऐसा मानकर तुम्हें शान्त रहना चाहिए। इसके लिए उनमें से किसीपर भी क्रोध नहीं करना चाहिए। आश्रम बिगड़े हुओंको सुधारनेके लिए नहीं, बल्कि अच्छे लोगोंको सेवाकी शिक्षा देने और सेवाका क्षेत्र तैयार करनेके लिए रची गई संस्था है । इस वाक्य में मैंने 'अच्छे' शब्दका प्रयोग किया है किन्तु यदि आश्रमवासी अपनेको सम्पूर्ण- रूपसे अच्छा मानें तो वे पाप के भागी होंगे। यहाँ 'अच्छे' का अर्थ है " जो अपने जैसे मालूम हों ।" इस कसौटीपर जो खरा न उतरे उसे वे नहीं ले सकते । यदि हम आश्रमको अपंगालय बनाना चाहते हों तो उसकी रचना बिलकुल दूसरी तरहसे करनी चाहिए । तब वह कैसा होगा इसकी कल्पना तुम स्वयं कर सकती हो। और एक बार उसे अपंगालय बना डालनेपर हम उसमें किसी भी अपंगको लेने से इनकार कैसे कर सकेंगे ? तुम विचारकर देखो कि ऐसा करनेके बाद हम दुग्धालय, चर्मालय वगैरा नहीं खोल सकेंगे, नहीं चला सकेंगे। हमें उसका पूरा रूप ही बदलना होगा। एक बात याद रखो। जो कौटुम्बिक सम्बन्ध तुम्हारे दूसरे विस्तृत सम्बन्धोंके विरोधी हैं उनका तुम त्याग कर चुकी हो। पिता और भाई उसी प्रमाणमें तुम्हारे पिता और भाई हैं जिस प्रमाणमें आश्रम में या उससे बाहर उनकी आयु के दूसरे लोग । अपने पिता और भाईसे तुम्हारा अब वही सम्बन्ध है जो उनके जैसे अन्य लोगों से है । यह समझकर तुम्हें यदि तुम्हारा भाई आश्रम में नहीं आ सकता तो उसके लिए दु:ख नहीं करना चाहिए। क्या तुम्हारा भाई किसी अनाथाश्रममें जानेके लिए तैयार है ? क्या वह बारडोली आश्रम जानेके लिए तैयार है ? वहाँ उसे लेंगे या नहीं यह में नहीं जानता । परन्तु वहाँ भाई जुगतराम अनेक प्रयोग कर रहे हैं। उनमें शायद तुम्हारे भाईको शामिल किया जा सकेगा। पर यदि भाई जुगतराम उसे ले भी लें तो उसके खर्चका प्रश्न उठता है । तुम्हारे पिता यह खर्च दे सकेंगे ? इन सभी प्रश्नोंपर धीरजके साथ तटस्थ भावसे विचार करना और मुझे निस्संकोच लिखना ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी'।
सौजन्य : नारायण देसाई

  1. आश्रमके कार्यवाहक मण्डलने शारदाके भाईको जिसे पिताने घरसे निकाल दिया था आश्रममें लेनेसे इनकार कर दिया था। शारदाने गांधीजीसे इस बातकी शिकायत की थी ।