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३५६. विदाई-सन्देश : विद्यार्थियोंको

[२२ अगस्त, १९२७ के पश्चात् ][१]

विद्यार्थी खादी आदिके लिए चाहे जितना दान दें, उससे मुझे संतोष नहीं होगा। मैं तो देशके लिए उनका सर्वस्व चाहता हूँ । देशसे वे जो-कुछ पा रहे हैं, उसका यही प्रतिदान हो सकता है; मगर यह भी पूरा नहीं, कुछ थोड़ा-सा ही प्रतिदान होगा ।

[ अंग्रेजीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी ।
सौजन्य : नारायण देसाई

३५७. पत्र : कुवलयानन्दको

कुमार पार्क, बंगलोर
२३ अगस्त, १९२७

प्रिय मित्र,

मैसूर में मेरा कार्यक्रम २९ तारीखको पूरा हो जायेगा । ३० तारीखको मैं तमिल- नाडके लिए चल दूंगा और कुछ दिनके लिए मेरा सदर मुकाम मद्रास (श्रीयुत एस० श्रीनिवास अय्यंगार, अमजद बाग, लुज, मइलापुर, मद्रास) रहेगा ।

पर यह पत्र आश्रम के एक कार्यकर्त्ता पूंजाभाईको आपकी देखरेख में रखने के बारेमें लिख रहा हूँ। पूंजाभाई कुछ दिनोंसे पेटके ऐसे दर्दसे पीड़ित हैं, जिसका ठीक-ठीक निदान नहीं हो पाया है। वे आपको अपनी बीमारीका पूरा हाल खुद बतलायेंगे । पूंजाभाई बड़े ही संयमी व्यक्ति हैं और कठोरतम उपचारको निभा लेंगे। मैं उनके रोगको योग-क्रियाओं द्वारा उपचार के लिए विशेष उपयुक्त समझता हूँ । इसीलिए मैं उनको आपकी देखरेख में रख रहा हूँ ।

पूंजाभाई वहाँ किसीको भी नहीं जानते। सबसे अच्छा तो यही रहेगा कि उनको आपके आश्रम में स्थान मिल जाये; पर यदि न मिल सके तो आप उनको ठहरनेके लिए शायद कोई दूसरा स्थान बतला देंगे। वे अपनी चिकित्साका खर्च आप उठायेंगे, क्योंकि उनके पास आमदनीके अपने जरिये हैं और वे किसीपर भी भार बनकर नहीं रहना चाहते। आश्रम में भी वे अपना खर्च आप उठाते हैं। इसलिए आप उनसे इलाजका खर्च लेनेमें कोई संकोच न कीजिएगा ।

  1. साधन-सूत्रमें यह २२ अगस्तकी सामग्रीके बाद आता है।