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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं अपने शरीरकी शक्ति बनाये हुए हूँ और किसी तरहकी थकान महसूस किये विना दौरा कर रहा हूँ ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी (जी० एन० ५०५२) की फोटो - नकलसे ।

३५८. पत्र : टी० आर० कृष्णस्वामी अय्यरको

कुमार पार्क,बंगलोर
२३ अगस्त, १९२७

प्रिय कृष्णस्वामी,

आपका पत्र मिला । मुझे अफसोस के साथ आपको बतलाना पड़ रहा है कि में अबतक उन तेलोंका प्रयोग नहीं कर पाया हूँ। इसका बस एक ही कारण है कि मैं दौरेपर रहा। यात्रा में अपने हाथमें बोतलें लिये फिरना और तरह-तरहके प्रयोग करना मुझे पसन्द नहीं ।

कपास की खेतीका विचार अच्छा है । परन्तु इसकी पूरी योजना कतैयोंकी सुविधाकी दृष्टिसे बनाई जानी चाहिए, विदेशोंके लिए या देशी मिलोंके लिए भी रुई खरीदनेवालों के हितकी दृष्टिसे नहीं। इसलिए इसकी थोड़ी-थोड़ी खेती सब जगह होनी चाहिए। इसलिए इस खेतीको राज्यकी आयका जरिया नहीं माना जा सकता। इस प्रकार कपास की खेती हर जोतके एक निश्चित हिस्से में करनी है, जैसे चम्पारन में हर जोत के ३/२०वें भाग में नीलकी खेती कराई जाती थी । बड़ी शानदार चीज थी वह । खराबी यही थी कि वह निलहे साहबोंके फायदेके लिए ही कराई जाती थी । फिर आपको यह भी पता लगाना पड़ेगा कि कपासकी कौन-सी किस्में कहाँ लगाई जायें, और देव कपास चल पायेगी या नहीं, इत्यादि । इसलिए यदि आप इस कामका बीड़ा उठायें तो आपको कपास की खेतीकी समस्याके सभी पहलुओंका अध्ययन करना पड़ेगा । आश्रम में ऐसे प्रयोग किये गये हैं और आप निदेशक, तकनीकी विभाग, अखिल भार- तीय चरखा संघ, साबरमतीसे पत्र व्यवहार करके इस विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

श्रीयुत टी० आर० कृष्णस्वामी

शबरी आश्रम

ओलवाकोट

अंग्रेजी (जी० एन० ६८३२) की फोटो नकलसे ।