पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/४५९

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३६२. पत्र : डॉ० सत्यपालको

कुमार पार्क, बंगलोर
२३ अगस्त, १९२७

प्रिय डॉ० सत्यपाल,

आपका पत्र मिला। आपकी बात में समझता हूँ, पर लालाजीके प्रति आपके रुखको में ठीक नहीं मानता। मैं भी कई बातोंमें उनसे सहमत नहीं, लेकिन उनकी ईमानदारी और देश-प्रेमसे तो इनकार नहीं किया जा सकता । अपने आत्म-त्याग और अनवरत देश-सेवाके कामके कारण वे हमारे सम्मान और प्रेम के पात्र हैं और पंजाब में कोई भी सार्वजनिक कार्य उनको अलग रखकर नहीं किया जा सकता । आप शायद जानते हैं कि असहयोग जब चरम बिन्दुपर था तब भी मैं यही कहा करता था और अपने सहकर्मियोंसे भी बराबर यही कहता रहता था कि मैं पंजाबमें लालाजीके बिना कुछ भी नहीं कर सकता और न करूंगा ही और मेरा उद्देश्य लालाजीके विचारोंमें परिवर्तन लाना है, और यह भी कि पंजाबियोंको पूरा अधिकार है कि वे मुझ जैसे एक लगभग अजनबीकी बात न मानकर लालाजीकी बातपर कान दें । इसलिए यदि आपकी जगह मैं होता तो मैं बार-बार लालाजीके पास जाता और उन्हें अपने विचारोंका कायल करनेका प्रयत्न करता, लेकिन उनके खिलाफ कोई काम न करता ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १९७७४) की फोटो-नकलसे ।

३६३. पत्र : मणिबहन पटेलको

[२२ अगस्त, १९२७ के पश्चात् ][१]

चि० मणि, तुम्हारा पत्र मिला। मेरे मुंहसे कोई बात निकली, इसपर महादेवने तुम्हारी इजाजतकी प्रतीक्षा किये बिना ही मुझे तुम्हारा पत्र दिखा दिया।[२] महादेवसे कोई भी यह आशा न रखे कि वह मुझसे कुछ छिपा सकेगा। यह बात उसकी शक्ति से बाहर है। हम जब कोई आदत डाल लेते हैं तब उससे उलटा काम करना हमारी शक्तिसे बाहर हो जाता है। अच्छी टेव डालने के लिए यह चीज सीखने योग्य है । जो व्यक्ति विशुद्ध अहिंसाका ही विचार करता रहता है वह बादमें हिंसा करनेमें अशक्त हो

  1. साधन-सूत्रमें पह २३-८-१९२७के पत्रोंके बाद दिया गया है।
  2. महादेव देसाईने गांधीजीको एक विस्तृत पत्र पढ़कर सुनाया जिसमें मणिबहनने लिखा था कि उन्हें आश्रम में रहनेमें संकोच होता है।