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६.पत्र: डब्ल्यू○ बी○ स्टोवरको

साबरमती आश्रम[१]
१६ जून,१९२७

प्रिय भाई,

पत्रके लिए धन्यवाद ।[२] आपका सुझाव[३] दिलचस्प तो है, लेकिन समझमें नहीं आता कि चरखेसे आपका क्या झगड़ा है। इसे तो करोड़ों लोग आसानीसे अपना सकते हैं, जब कि आपके सुझावपर अमल करनेके लिए तकनीकी ज्ञान और रुझान की जरूरत है । पाश्चात्य संसारमें रहनेवाले आप लोगोंने तो साक्षरताको देवता ही बना डाला है । पता नहीं, अगर ईसा, जिन्हें आप भगवान् ईसा " कहते हैं, फिरसे देह धारण करके इस दुनिया में आयें और पश्चिमके लोगोंको किताबी ज्ञान, धन-सम्पत्तिके पीछे पागल और अपना अधिकांश समय और जीवन बाह्य उपादानोंसे आनन्दकी प्राप्तिके प्रयत्न में लगाते देखें तो क्या कहें। अगर हर पढ़ा-लिखा आदमी यन्त्रवत् हर अस्पृश्यको प्रतिदिन आधा घंटा पढ़ाने लिखाने में लगाने भी लगे तो इससे उसको या अस्पृश्योंको क्या लाभ हो सकता है ? और आप जापानकी भौतिक प्रगतिपर इतने मुग्ध क्यों हैं ?[४] मुझे तो पता नहीं कि भौतिक प्रगति के साथ-साथ उसने नैतिक प्रगति भी की या नहीं। मगर मैं जापानियोंके बारेमें कोई फतवा नहीं देना चाहता। अगर चाहूँ तो भी इसके लिए जरूरी तथ्य और आंकड़े मेरे पास नहीं हैं । लेकिन, न तो नैतिक बलसे रहित साक्षरताके प्रति मेरे मनमें कोई आकर्षण है और न धन-सम्पत्तिके प्रति । क्या आप चरखेमें मेरी ऐसी दृढ़ आस्था होनेका कारण जानते हैं? न केवल अस्पृश्य, बल्कि करोड़ों अन्य लोग भी भारतमें सिर्फ इस वजह से भूखकी ज्वालामें तड़प रहे हैं कि उनके पास कोई काम नहीं है और अब तो वे इतने आलसी भी बन चुके हैं कि उनसे काम करते नहीं बनता । इसलिए मैं जो करोड़ों भूखे लोगोंके सामने चरखेको रख रहा हूँ उसका कारण यह है कि इसके अलावा कोई दूसरा सीधा-सादा और साथ ही उत्पादनक्षम ऐसा काम

  1. स्थायी पता ।
  2. २ मई, १९२७ का पत्र ।
  3. श्री स्टोवरने अपने पत्रमें गांधीजीको सुझाव दिया था कि प्रतिदिन आधा घंटा कातने के बजाय वे अशिक्षित भारतीयों में से किसी एकको प्रतिदिन आधे घंटे पढ़ाने लिखानेका काम करे और इस तरह शिक्षित भारतीयोंके सामने एक उदाहरण पेश करके उन्हें यह काम करनेके लिए प्रेरित करें। उनका यह भी सुझाव था कि ऐसा शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों अलग-अलग जातियोंके हों। श्री स्टोवरका -खपाल था कि अगर सारे देश में बड़े पैमानेपर यह काम किया जा सके तो लोगों के विचारोंमें एक तरहकी क्रान्ति-सी आ जायेगी ।
  4. श्री स्टोवरने अपने पत्रमें गांधीजीको सुझाव दिया था कि प्रतिदिन आधा घंटा कातने के बजाय वे अशिक्षित भारतीयों में से किसी एकको प्रतिदिन आधे घंटे पढ़ाने लिखानेका काम करे और इस तरह शिक्षित भारतीयोंके सामने एक उदाहरण पेश करके उन्हें यह काम करनेके लिए प्रेरित करें। उनका यह भी सुझाव था कि ऐसा शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों अलग-अलग जातियोंके हों। श्री स्टोवरका -खपाल था कि अगर सारे देश में बड़े पैमानेपर यह काम किया जा सके तो लोगों के विचारोंमें एक तरहकी क्रान्ति-सी आ जायेगी ।