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पत्र : डब्ल्यू० वी० स्टोवरको

नहीं है, जो इन करोड़ों लोगोंको दिया जा सकता हो । मैं भारतके शिक्षित और सम्पन्न लोगों से इसे अपनानेके लिए इसलिए भी कह रहा हूँ कि वे शेष लोगोंके सामने एक उदाहरण पेश कर सकें ।

अपने मिशनरी मित्रोंके लिए मेरे मन में बहुत अधिक सम्मान है, और इसी सम्मानकी भावना के कारण मैं उन्हें हमेशा 'बाइबिल' का गलत अर्थ लगानेके खिलाफ आगाह करता रहता हूँ । आप कहते हैं, “आपने प्रभु ईसाको अपना पथप्रदर्शक माना है । इससे अच्छा कोई पथप्रदर्शक हो भी नहीं सकता था।" मगर यहाँ आपको जो गलतफहमी हुई है, उसे यदि में दूर करनेकी कोशिश करूँ तो आप बुरा तो नहीं मानेंगे ! मैं दुनियाके अन्य महात्माओं और शिक्षकोंकी तरह ही ईसाको भी मानव- प्राणी ही मानता हूँ। और ऐसे शिक्षकके रूपमें वे सचमुच महान् थे। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि मैं उन्हें महानतम मानता हूँ। मैं जो बार-बार स्वीकार करता हूँ कि 'सर्मन ऑन द माउंट' (गिरि-शिखर पर दिये गये उपदेश ) से मैंने बहुत- कुछ पाया है, उसका मतलब कोई यह न लगाये कि मैं 'बाइबिल 'की या ईसाके जीवनकी परम्परागत व्याख्याको स्वीकार करता हूँ ।

आपका पत्र बहुत निश्छल भावसे लिखा हुआ है, और इसलिए मुझे लगा कि आपकी इस निश्छलताका सबसे अच्छा प्रतिदान यही हो सकता है कि मैं बिना किसी दुराव- छिपावके आपके सामने अपनी स्थिति रख दूँ ।

हृदयसे आपका,
मो○ क○ गांधी,

श्री डब्ल्यू० बी० स्टोवर

माउंट मॉरिस
इलिनॉयस

यू०एस०ए०

अंग्रेजी (एस० एन० १२५२१) की फोटो - नकलसे ।