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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शून्य उन चेहरोंवाले लोगों में भी ईश्वर वास करता है, तो उनमें हमें दरिद्रनारायणके दर्शन होते हैं। आपने ये थैलियाँ दरिद्रनारायणके लिए ही दी हैं। और मैंने जितना भी कुछ देखा-समझा है उसके आधारपर मेरे मनमें यही विश्वास जड़ पकड़ता जा रहा है कि दरिद्रनारायणकी सेवा चरखेके जरिये ही की जा सकती है। हमारा देश जिस भयंकर रोगसे पीड़ित है वह है धन्धेका अभाव; और देशके सात लाख गाँवोंमें बसनेवाले करोड़ों लोगोंके लिए एक ही धन्धा ऐसा है जो जुटाया जा सकता है। वह चरखा ही है। परन्तु चरखा भी तबतक शक्तिहीन और अनुपयोगी ही रहेगा, जबतक हम लोग सभी विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार करनेका संकल्प नहीं कर लेंगे। आपने मानपत्रमें अपनी बात अत्यन्त ही संक्षेप में रखकर बड़ा अच्छा किया है। राष्ट्रीय रचनात्मक कार्यक्रम के अन्य मुद्दोंमें भी मेरी आस्था उतनी ही सूक्ष्म और दृढ़ है जितनी कि खादी के काम में । मैं जानता हूँ कि सामने गहरा अन्धकार दीख रहा है। परन्तु अँधेरेके बावजूद आशाकी किरण भी है। हिन्दू-मुसलमान एकताकी सम्भावना और इसकी आवश्यकतामें मैं फिर एक बार अपना विश्वास दोहराता हूँ। मैं यह भी एक बार फिर कहता हूँ कि यदि हम हिन्दू लोग हिन्दू धर्मको अस्पृश्यताके कलंकसे मुक्त नहीं करेंगे तो हमारा धर्म नष्ट हो जायेगा ।

पूर्ण मद्य-निषेध करना मैं राज्यका एक पुनीत कर्त्तव्य समझता हूँ। मेरी रायम यह काफी पहले कर देना चाहिए था । संसार में यदि कोई भी देश ऐसा है जहाँ तत्काल पूर्ण मद्य-निषेधके लिए परिस्थिति बिलकुल परिपक्व है, तो निस्सन्देह वह भारत ही है, और यदि आप सभी लोग सम्मिलित रूपसे इसकी माँग करें तो बिना किसी कठिनाईके पूर्ण मद्य-निषेध किया जा सकता है।

सहकारी समितिकी ओरसे यह मानपत्र पाकर मुझे बड़ी खुशी हुई। सहकारी समितिको मेरा विनम्र सुझाव है कि उसे अपने कार्यक्रममें चरखा और खादी भी शामिल करनी चाहिए, क्योंकि इसके बिना उसका काम अच्छा होते हुए भी अपने- आपमें बिलकुल अघूरा और देशकी जनताको आवश्यकताओंको देखते हुए असंगत बना रहेगा। मुझे इस बातकी भी खुशी है कि विद्यार्थियोंने अपनी ओरसे एक थैली अलगसे जुटाई है। मैं जहाँ-जहाँ गया हूँ, लगभग सभी जगह विद्यार्थियोंने ऐसा ही किया है। इससे मेरे मन में आशा बँधती है, क्योंकि उनका थैली जमा करना मैं उनके इस सच्चे संकल्पका प्रतीक मानता हूँ कि वे देशकी गरीब-से-गरीब जनताकी सेवाके लिए तत्पर हैं। और मैं उनको अपने अनुभवकी एक बात बतला दूं कि पवित्र और संयमपूर्ण जीवनके बिना देशसेवाका कार्य असम्भव है ।

इस सभामें बहनोंकी संख्या काफी है। यह बड़ी प्रसन्नताकी बात है। मैं यहाँ उपस्थित पुरुषोंको याद दिलाना चाहता हूँ कि अपनी बहनोंके प्रति उनका क्या कर्त्तव्य है। यदि नरम-से-नरम भाषाका भी प्रयोग किया जाये तब भी इतना तो कहना ही पड़ेगा कि हम अबतक अपनी बहनोंकी घोर उपेक्षा करते रहे हैं। यदि हम सचमुच ही अपने राष्ट्रका काया-कल्प करना चाहते हैं तो हमें समाज में महिलाओंके स्थान के बारेमें अपनी अनेक धारणाओंको बदलना होगा। बाल-विवाह और बाल-वैधव्यको