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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विद्यार्थी और 'गीता' प्रथाऐं जहाँ भी और जिस किसी रूप में हैं, वे हमारे समाजकी सबसे बड़ी बुराइयाँ हैं। निश्चय ही ये बुराइयाँ ऐसी नहीं हैं जिन्हें दूर करना हमारी शक्तिसे बाहर हो, और यदि हम समयपर सचेत होकर अपने जीवन में समुचित सुधार नहीं करते तो हमें ईश्वर और दुनियाके सामने अपराधी बनकर खड़ा होना पड़ेगा। मैं जानता कि इस विशाल सभा में उपस्थित सभी सज्जनोंने चन्दा नहीं दिया है। मैं चाहता हूँ कि इस काम के लिए हर व्यक्ति इसके महत्त्वको समझते हुए जितना भी खुशी-खुशी दे सकता है, अवश्य दे। मैं चाहता हूँ कि इस काम के लिए गरीबसे-गरीब स्त्री-पुरुष, लड़के-लड़कियाँ भी जितना दे सकते हों, अवश्य दें। में शुरूमें कह चुका हूँ कि हमें यह याद रखना चाहिए कि देशमें हमसे भी ज्यादा गरीब लोग मौजूद हैं। स्वयंसेवक लोग जब चन्दा इकट्ठा करने आपके पास आयें, तो आपको सभामें पूरी तरह शान्ति बनाये रखनी चाहिए। मैं चाहता हूँ कि सिर्फ वही लोग चन्दा दें, जिनको चरखेके सन्देश में विश्वास हो । और जो लोग चन्दा नहीं देना चाहते, वे चन्दा- उगाही के दौरान अपने-अपने स्थानपर ही बैठे रहें। ईश्वर यहाँ उपस्थित लोगोंका और जिनके लिए हम काम करना चाहते हैं उन सबका कल्याण करे ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २७-८-१९२७

३६७. विद्यार्थी और 'गीता'

अभी उस दिन बातचीत के दौरान मेरे एक मिशनरी मित्रने मुझसे पूछ लिया कि यदि भारत वास्तव में आध्यात्मिक रूपसे काफी आगे बढ़ा हुआ देश है, तो फिर ऐसा क्यों है कि यहाँ बहुत थोड़ेसे विद्यार्थियोंको अपने धर्मकी, यहाँ तक कि 'भगवदगीता' की भी मामूली-सी ही जानकारी है। वे खुद ही एक शिक्षाविद् हैं, सो अपने इस कथनके समर्थन में उन्होंने कहा कि वे जब भी विद्यार्थियोंसे मिलते हैं, उनसे यह पूछना नहीं भूलते कि उनको अपने धर्म या 'भगवद्गीता' की कोई जानकारी है या नहीं; और विद्यार्थियोंकी एक बहुत बड़ी संख्या ऐसी ही मिलती है, जिसे कोई जानकारी नहीं होती ।

मैं अभी इस तर्ककी संगति या असंगतिपर विचार नहीं करना चाहता कि कुछ विद्यार्थियोंको यदि अपने धर्मकी जानकारी न हो तो भारतको आध्यात्मिक रूपसे उन्नत देश नहीं माना जा सकता। यहाँ मैं इतना ही कहूँगा कि विद्यार्थियोंका धार्मिक ग्रन्थोंसे अपरिचित रहनेका मतलब अनिवार्यतः यही नहीं लगाया जा सकता कि भारतीय समाजमें, जिसके कि वे विद्यार्थी अंग हैं, धार्मिक जीवनका नितान्त अभाव है, या आध्यात्मिकताकी कमी है। परन्तु इसमें कोई शक नहीं कि सरकारी शिक्षण संस्थाओं- से निकलनेवाले विद्यार्थियोंकी विशाल संख्या धार्मिक शिक्षासे सर्वथा वंचित रहती है। मेरे मिशनरी मित्र मैसूरके विद्यार्थियों के बारे में बात कर रहे थे । मेरा मन इस