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टिप्पणियाँ

बालिकाको संस्कृतका ज्ञान होना ही चाहिए। परन्तु अभी एक लम्बे अर्सेतक लाखों व्यक्ति ऐसे रहेंगे जिनको संस्कृतका कोई ज्ञान नहीं होगा। संस्कृत न जाननेके कारण ही उनको 'गीता'के उपदेशोंसे वंचित रखना आत्मघातके समान होगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २५-८-१९२७

३६८. टिप्पणियाँ
ये धृष्ट स्मारक

मद्रासमें दो नवयुवकोंपर मुकदमा चलाया गया है। एक तीस-वर्षीय हिन्दू और दूसरा पच्चीस वर्षीय मुसलमान है। दोनोंपर मद्रासकी माउण्ट रोडपर स्थित गदरके दौरान प्रसिद्धि पाये जनरल नीलकी मूर्तिको तोड़नेकी कोशिश करनेका अभियोग लगाया गया है। यह मुकदमा हमारे लिए गहरा महत्त्व रखता है। इन नवयुवकोंकी यह कोशिश हमें असहयोग आन्दोलन के दौरान लाहोरमें हुए उस विफल प्रयासको याद दिलाती है जिसमें लॉरेन्सकी मूर्तिको, या कमसे कम उसपर अंकित अत्यन्त ही आपत्तिजनक "कलम या तलवार" वाले वाक्यको हटवानेकी कोशिश की गई थी। लाहोरमें वह कोशिश आम जनताकी ओरसे की गई थी। मद्रासमें यह प्रयास केवल दो नवयुवकोंने किया था, जो एक दृढ़ संकल्पके साथ चुपचाप अपना लक्ष्य पूरा करने गये थे। अभियुक्तोंका निम्नलिखित बयान, जो 'हिन्दू' में प्रकाशित रिपोर्टसे लिया गया है, लोग दिलचस्पीसे पढ़ेंगे :

पहले अभियुक्तने कहा कि मेरा जन्म तो तिन्नेवेल्लीमें हुआ था पर मैं रहता हूँ मदुरामें। यह काम करनेसे पहले मैं जानता था कि मुझे किस प्रकारका दण्ड मिलेगा। इस काम के लिए हम कोई भी दण्ड भोगनेको तैयारथे। इतिहासकी अपनी जानकारीके आधारपर मुझे मालूम था कि नीलने इस देशको बड़ा नुकसान पहुँचाया था और मैंने सोचा कि नीलकी मूर्ति वहाँ नहीं रहनी चाहिए और इसीलिए मैंने मूर्तिको नष्ट करनेका संकल्प किया। अपने स्थानसे चलते समय हम हथौड़ी और कुल्हाड़ी अपने साथ लाये थे। पर हथौड़ी और कुल्हाड़ी इसी कामके लिए नहीं लाये थे। मद्रास पहुँचनेपर, हम दर्शनीय स्थलोंको देखने गये, और उसी दौरान हमने मूर्ति भी देखी। मूर्तिको देखकर उसका इतिहास याद आ गया और हमने उसे आज सुबह नष्ट करनेकी कोशिश की। हमने सोचा था कि मूर्ति या तो कांसेकी होगी या संगमर्मरकी, पर वह असलमें ताँबेकी निकली। इसलिए उसके कुछ ही हिस्से टूट पाये थे कि सार्जेन्ट हमें थाने ले गया। इस अपराधके लिए माननीय न्यायाधीश हमें जो भी दण्ड देंगे,उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे।