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सावधानीसे काम ले रहा हूँ - तो सभी सम्बन्धित लोग उच्चतम सम्मानके पात्र हैं। वे सब एकसाथ नेता भी थे और अनुगामी भी । विपत्ति पड़नेपर उनका यह संघटन अपने-आप बन गया था।

नेताओंके सोचनेकी बात अब यह है कि बाढ़की विपत्ति आनेपर जनताके इस पराक्रमसे हमें जो सीख मिली है, क्या उसको स्थायी रूप दिया जा सकता है। क्या तात्कालिक आवश्यकता पूरी हो चुकनेके बाद भी हिन्दुओं और मुसलमानोंकी मैत्री कायम रहेगी? क्या दलित वर्गोंकी गर्दनपर से हमेशा के लिए जुआ हट जायेगा? क्या लोग भविष्य में भी अपने नित्य प्रतिके कार्यों और व्यवहार में स्वार्थको त्यागकर सभीके हित-साधनका खयाल करेंगे ? क्या गुजरातकी ओर बहनेवाला दान और उदारताका यह स्रोत बाढ़के पहलेकी लोलुपताको सदा अंकुशमें रख सकेगा? क्या? सहायता कोषका काम सँभालनेवाले लोग कोषसे अपने लिए कुछ खर्च करने या उसके गबनका लोभ संवरण कर सकेंगे ? क्या विपत्तिका झूठा शोर न मचायेंगे और राहतकी भविष्य में भी ऐसा होगा कि लोग आवश्यकता न होनेपर भी उसकी माँग न करेंगे ?

इन और ऐसे ही अन्य अनेक प्रश्नों के उत्तर तभी संतोषप्रद ढंगसे दिये जा सकेंगे जब आज काम करनेवाले अनेक नेता अपनेको स्वर्णकी भाँति खरा सिद्ध कर देंगे। ऐसा करनेका अर्थ होगा वास्तविक हृदय-परिवर्तन, सच्चे अर्थोंमें प्रायश्चित्त और आत्मशुद्धि । कहा जाता है कि प्रत्येक प्रलयके बाद, उससे बचे लोगोंके जीवन में सदा ही एक सुधार आता है। हो सकता कि यह विपत्ति इतनी बड़ी होनेपर भी शायद वास्तविक प्रलयकी कोटिकी न समझी जाये, और इसीलिए इससे उतने व्यापक सुधारको अपेक्षा न की जाये। मनुष्यकी संवेदनशीलता इतनी नष्ट हो चुकी है कि वह समय-समयपर ईश्वरके भेजे संकेतोंको समझ ही नहीं पाता । हमें तो हर बात ढोल पीटकर बतलानेकी जरूरत पड़ती है; तभी हमारी तन्द्रा टूटती है और हम इस चेतावनीको सुनते और समझते हैं कि आत्म-साक्षात्कारका एकमात्र मार्ग यही है कि हम अपने-आपको समाजमें इतना गर्क कर दें कि अपना खुदका कुछ भी न रहे । क्या गुजरात अपने-आपको इतना प्रबुद्ध सिद्ध करेगा कि वह हालकी बाढ़ोंको एक पर्याप्त चेतावनीके रूपमें समझ ले और इस विपद्ग्रस्त प्रदेशके इतिहास में एक नया शानदार अध्याय जोड़ दे ? यदि गुजरात की जनतामें कोई स्थायी और स्पष्ट दिख सकनेवाला सुधार न हो पाया तो भावी पीढ़ियाँ पराक्रम, आत्म-निर्भरता और पार- स्परिक सहायताके आजके इन विवरणोंपर विश्वास न करेंगी और वह उचित ही होगा।

[अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २५-८-१९२७