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७. पत्र : डा० एम० एस० केलकरको

कुमार पार्क,बंगलोर
१६ जून,१९२७

प्रिय डाक्टर साहब,

देखता हूँ, आपके और मेरे विचारोंकी दूरी बढ़ती ही जा रही है । में ज्योतिष और जादू-टोने, दोनोंमेंसे एकके प्रति भी आपका उत्साह नहीं समझ पाता । हो सकता है ये दोनों ठोस विज्ञान हों, लेकिन मैं मानता हूँ कि ये ऐसे विज्ञान हैं जिनसे हमें दूर ही रहना चाहिए। सच तो यह है कि मैं शरीरसे सम्बद्ध चीजोंको इतना महत्व ही नहीं देता कि शरीरको कायम रखने या इसे ठीक अवस्थामें रखनेके लिए समस्त उपलब्ध साधनों का उपयोग कर गुजरना चाहूँ । कारण यह है कि जीवनकी योजना में शरीरका एक सीमित महत्त्व ही है । सो में उसकी रक्षाके लिए उतने ही सीमित साधनों का भी उपयोग करता हूँ और इसलिए ऐसे साधनों का उपयोग करनेसे बराबर बचता रहता हूँ, जिनका नैतिक औचित्य मुझे सन्दिग्ध जान पड़ता है । अतएव, यदि में चूकता भी हूँ तो उसकी दिशा सही ही होगी । शरीरकी जरूरत से ज्यादा चिन्ता करने और उसके लिए ज्योतिष आदि न जाने किस-किस बात के पीछे भागते-फिरने का मतलब अपने स्रष्टासे और भी दूर चले जाना है और यह बात मुझे तो वस्तुसे उसकी छापाको अधिक महत्त्व देने जैसी लगती है । सो में आपको अपने साथ यात्रा करनेका कष्ट नहीं देना चाहूँगा ।

यहाँके डाक्टरोंका विचार है कि १५० तो मेरे लिए सामान्य रक्तचाप है, और उन्हें इसमें कोई सन्देह नहीं है कि अगले महीने में फिरसे थोड़ी-बहुत यात्रा आरम्भ कर सकूंगा । निस्सन्देह, मैं शारीरिक दृष्टिसे दिन-प्रतिदिन अधिक सशक्त होता जा रहा हूँ ।

हृदयसे आपका,

डा० एस० एस० केलकर

मार्फत-- जे० जी० गद्रे
न्यू भाटवाड़ी

बम्बई - ४

अंग्रेजी (एस० एन० १४१५७ ) की फोटो नकलसे ।