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पत्र : मोतीलाल नेहरूको

हुए दृष्टिकोणको मान लें और मात्र एक निष्पक्ष सभापति रहना स्वीकार कर लें। तब फिर करनेको अधिक-कुछ रह ही नहीं जायेगा। लेकिन यदि नया चुनाव करानेकी जरूरत पड़ी ही, तो फिर मैं देखूंगा कि घटनाक्रम कैसा चलता है और आपको 'रायटर' के तार द्वारा परिणामकी सूचना मिल जायेगी । फिर भी, आप मुझे अपना लन्दनका पता लिख भेजिए जिससे कि मैं जरूरत पड़नेपर पत्र या तार भेज सकूं। लेकिन मैं चाहता हूँ कि आप बिलकुल बेफिक्रीसे विदेश-यात्रा पर जायें । वैसे मैं जानता हूँ कि मुझे याद दिलानेकी कतई जरूरत नहीं, आप खुद भी बेफिक मनसे ही यात्रा करेंगे। इतना स्पष्ट है कि स्थिति अभी इतनी जड़ नहीं हुई है कि कोई परिवर्तन न किया जा सके ।

वर्षका लगभग सारा-का-सारा शेष समय मुझे दक्षिण भारत में ही बिताना पड़ेगा। सितम्बर तकके अपने कार्यक्रमकी एक प्रति मैं आपको साथमें भेज रहा हूँ। परन्तु साबरमतीके पतेपर पत्र-व्यवहार करना शायद ज्यादा ठीक रहेगा, क्योंकि वहाँसे तार और पत्र भी शीघ्रतासे मेरे पतेपर भेज दिये जाते हैं।

आशा है, यूरोप में आपका समय अच्छा गुजरेगा और आप जवाहरलालके साथ कांग्रेस-सप्ताहके पहले, ठीक समयसे स्वदेश लौट आयेंगे । कृपया इन्दुसे पूछिये कि उसे भारतके अपने बूढ़े मित्रोंकी याद कभी आती है या नहीं? और उसे अपने उस बूढ़े मित्रकी याद है या नहीं जो अक्सर आनन्द भवन आया करता था और बकरीके दूधके अलावा कुछ नहीं पीता था और बच्चोंके लिए भी कुछ छोड़नेकी परवाह न करके सारेके-सारे बढ़िया-बढ़िया फल खुद चट कर जाता था ।

हृदयसे आपका,

पण्डित मोतीलाल नेहरू
इलाहाबाद

[ पुनश्च : ]

'यंग इंडिया के लिए लिखी अपनी टिप्पणीकी एक प्रति संलग्न कर रहा हूँ । इसकी एक प्रति मैंने अनुमोदनके लिए डॉ० अन्सारीके पास भी भेजी है।

मो० क० गां०

अंग्रेजी (एस० एन० १२८७५) की फोटो-नकलसे ।