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३७४. वर्णसंकर सन्तानकी समस्या

फ्रेंच आफ्रिकाके मबुकी शहरसे एक भाईका दुःखद पत्र मिला है। उसका सार यह है :

इस मुल्क में वर्णसंकर बच्चे बहुत हैं। इन बच्चोंकी उत्पत्तिम हिन्दू-मुसल- मान सबका हाथ है। वे व्यापारके लिए यहाँ आते हैं और इच्छानुसार किसी भी हबशी औरतको लेकर रहने लगते हैं। उससे जो सन्तान होती है, उसके पालनकी वे कोई परवाह नहीं करते। वे तो जैसे-तैसे बड़े होते हैं। ऐसे सम्बन्ध स्थापित करनेवाले ये व्यापारी जब स्वदेश लौटते हैं तो वे इन गरीब औरतों और उनके बच्चोंको भूल जाते हैं । यहाँतक कि उनके भरण-पोषणके लिए भी वे कुछ नहीं छोड़ जाते। और जब उनके भरण-पोषणके लिए मेरे जैसा कोई आदमी कुछ करता है, ऐसी कोई संस्था खड़ी करनेकी इच्छा करता है तो उसकी कोई मदद नहीं करता। क्या आप बतायेंगे कि ऐसी वर्णसंकर सन्तान के प्रति मेरा और दूसरे हिन्दुस्तानियोंका क्या कर्त्तव्य है ? क्या आप ऐसा मानते हैं कि पापसे उत्पन्न सन्तानका पालन-पोषण करनेसे पापका ही पोषण होता है और इसलिए उनके प्रति हमारा कोई कर्तव्य नहीं है ? यदि आप ऐसा मानते हैं तो इसके साथ-साथ इस बातपर भी जरूर विचार करें कि ऐसी सन्तानका कोई-न-कोई तो बेली बनेगा ही। ईश्वर उनका एकदम नाश तो नहीं होने देगा और यदि ऐसा होगा तो कालान्तरमें क्या यही लोग हमारे दुश्मन नहीं बन जायेंगे ? और यदि वे आगे चलकर हमारे दुश्मन बन जाते हैं तो क्या उन्हें कोई दोष दिया जा सकेगा ? अथवा क्या यह नहीं कहा जा सकता कि ऐसी सन्तान पैदा करनेवाले और उन्हें रास्ते भूखों भटकनेको छोड़नेवाले, अपने और अपनी जातिके नाशके हथियार गढ़ रहे हैं ?

प्रस्तुत पत्र-लेखकने जिस स्थितिका वर्णन किया है वह हालत मैंने खुद डेला- गोआ बे आदि शहरोंमें देखी है। जितनी देखी है उससे अधिक मित्रों और मुवक्किलोंसे सुनी है । निःसन्देह यह स्थिति दुःखदायक है। मुसलमान भाई ऐसी स्थिति में दया- धर्मका पालन करते हैं। जबकि धर्मके नामपर या धर्मके बहाने हिन्दू बहुत कठोर बन जाते हैं। परजातकी स्त्रीके साथ सम्बन्ध जोड़ने में मुसलमान अधर्म मानते नहीं जान पड़ते। हिन्दू ऐसे सम्बन्ध अधर्म मानते हुए जोड़ते हैं और यद्यपि इन स्त्रियोंसे वे विषय-भोग करते हुए नहीं डरते, मगर उसके परिणामकी जवाबदारी उठानेसे डरते हैं, अपने ही बच्चोंके स्पर्शमें दोष मानते हैं। अतः अन्तमें कोई तो उन्हें मुसल- मानोंको दे देता है और कोई ईसाइयोंको सौंप देता है और भला हुआ तो किसीको न सौंपकर, एक पैसा भी दिये बिना, यों ही भाग आता है । आफ्रिकाकी हबशी जाति भोली और ज्ञानहीन है, इसलिए उसे अपने हकका कोई खयाल नहीं होता।