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वर्णसंकर सन्तानकी समस्या


ऐसी स्थिति हमेशा तो रहेगी नहीं। उन्हींमें से कोई पढ़ा-लिखा जरूर निकलेगा और वह वैरभावसे लड़ेगा, गरीब औरतोंको उनके हकका भान करायेगा, उनकी सन्तान द्वारा न्यायपूर्ण या अन्यायपूर्ण झगड़ा करायेगा और उस झगड़ेमें सेरको सवासेर वाली दुनियाकी रीतिके अनुसार नीति-अनीतिका भेद न करते हुए भी संसार-भरकी सहानु- भूति पा लेगा ।

इस स्थितिसे निकलनेके सीधे उपाय तो बहुत-से हैं। अच्छा तो यह होगा कि जो व्यापारी संयमका पालन न कर सके वह अपनी स्त्रीको साथ लेकर जाये । यदि अकेला जाये, और किसी हवशी स्त्रीके साथ सम्बन्ध स्थापित करे तो विवेकका पालन करे, उस स्त्रीके साथ प्रेमपूर्ण बरताव करे, और उससे जो सन्तान उत्पन्न हो उसकी रक्षा करनेके कर्तव्यको स्वीकार करे। उसे यह समझना चाहिए कि कानून के अनुसार तो वह उस गरीब औरत और उसके बच्चोंका पालन-पोषण करनेको बँधा हुआ है। पर विषयी और निर्लज्ज आदमीको धर्माधर्म या भले-बुरेका विचार नहीं रहता। विषय-भोगके नशेमें वह पागल-सा हो जाता है, इसलिए ऐसे लेख वह क्यों पढ़ेगा ? और यदि पढ़ेगा तो उनपर ध्यान ही नहीं देगा। इसलिए प्रस्तुत पत्र-लेखक जैसे समाज-सुधारकको ही धर्मका विचार करना पड़ेगा। मुझे भय है कि जबतक समाज में पापी आदमी बने रहेंगे तबतक समाजको उनके पापका बोझ उसी प्रकार उठाना पड़ेगा, जैसे कि पुण्यशाली लोगोंके पुण्यका लाभ वह सुखसे उठाया करता है। कोई ऐसा आदमी तो है ही नहीं जो सर्वथा पापरहित हो । हम सब कुल मिलाकर एक पापियोंका दल हैं। पर जो आचारकी एक विशेष मर्यादाके भीतर चलते हैं, उनके पापको समाज अनदेखा करके उन्हें पुण्यात्मा गिनता है और जो उस मर्यादाका उल्लंघन करते हैं, उन्हें पापी गिना जाता है। इस तरह पापी और पुण्यात्माकी सामाजिक व्याख्या व्यवहारके अनुसार चलती है। ईश्वरके दरबार में तो हम सभी पापी गिने जानेवाले हैं और पापके परिमाणके अनुसार हमें सजा मिलेगी।

समाजकी ऐसी दयनीय स्थिति होने के कारण वर्णसंकर सन्तानका बोझ तो उसे उठाना ही पड़ेगा। अतः आफ्रिकामें रहनेवाले समाज-सुधारकोंके सामने दो रास्ते हैं: एक तो अदालतके जरिये और दूसरा अदालत के बाहरका । उन्हें दोनों रास्ते अपनाने- का अधिकार है। बाहरका मार्ग यह है कि वे अन्य सुधारकोंको इकट्ठा कर, धर्मका झगड़ा उठाये बिना, ऐसे बच्चोंके पालन-पोषणके लिए एक संस्था खड़ी करें। बच्चेका बाप अगर उसे अपने पास रखकर अपने धर्मानुसार पालना चाहे तो वच्चेपर किया गया खर्च उससे वसूल कर बच्चा उसे सौंप देना चाहिए। जिस-जिसके माँ-बापका पता चल जाये, उनसे उनके बच्चेके पालन-पोषणके लिए धन देनेका अनुरोध करना चाहिए और पैसे देनेकी शक्ति होते हुए भी अगर वे कुछ न दें तो उनपर कानून के मुताबिक मुकदमा चलाना चाहिए। साथ-साथ नैतिक सुधारके लिए भी प्रयत्न करना चाहिए । यदि हबशी औरत के साथ रहनेवाले व्यक्तिका अपने देशमें विवाह हो चुका हो तो उससे अपनी स्त्रीको बुला लेनेकी विनती करनी चाहिए। पर ये भाई लिखते हैं :