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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस धन्धेको प्रतिष्ठित भी बनाया जा सकता है, और इससे देश तथा उन लोगोंको लाभ भी हो सकता है। मवेशियों से सम्बन्धित इस महवत्पूर्ण समस्याको भी राज्य ही हल कर सकता है ।

परन्तु मैं आपका ध्यान एक और बातकी ओर भी आकर्षित करना चाहता हूँ । यहाँ भी मुझे महाराजा साहबके शब्दोंको ही उद्धृत करना पड़ेगा। उनके शब्द ये हैं :

मेरी प्रार्थना है कि आगामी वर्षोंमें ईश्वर हम सबको इसी सदुद्देश्यको प्राप्तिके लिए भाईचारेकी भावनासे मिल-जुलकर प्रयत्न करनेमें सहायता दे, जिससे कि हम कार्यक्षम प्रशासनके द्वारा और कृषि, उद्योग तथा वाणिज्यके लिए अधिक सुविधाएँ तथा सभी नागरिकोंके लिए समान अवसर सुलभ करा- कर अपनी सम्मिलित शक्तिके बलपर मंसूरको संसारके सबसे उन्नत देशोंकी पंक्तिमें बैठा सकें। मेरी हार्दिक इच्छा है कि हम इस बातको सदा ध्यान में रखें कि मेरे राज्यमें सभी जातियोंका दरजा बराबरका है और वे हमारे देशकी सन्तान हैं, और हम भाईचारेकी इसी भावनाके साथ अपने उन भाइयोंको दशा सुधारनेके लिए सतत प्रयत्नशील रहें जो हमारे जितने भाग्यशाली नहीं हैं।

यदि जनता भाईचारेकी भावनामें विश्वास न करती हो तो सरकार इसे उनपर थोप नहीं सकती। आदरणीय पंडित मदनमोहन मालवीयजीकी तरह, मुझे भी यह जानकर बड़ा दुःख हुआ कि इस राज्य में संस्कृतके ऐसे प्रकाण्ड पण्डित भी हैं जो आदि कर्नाटकोंको वेद पढ़ाने से इनकार करते हैं और जो जन्मजात अस्पृश्यताके सिद्धान्तके समर्थक हैं। यदि कोई मुझे इस बातका विश्वास दिला सके कि आजकल अस्पृश्यताका जो रूप है, वह हिन्दू धर्मका अविभाज्य अंग है तो मैं हिन्दू धर्मको त्यागने में एक पलके लिए भी आगा-पीछा नहीं करूंगा। लेकिन में पूरे विश्वासके साथ अपने हिन्दू भाइयोंसे कह सकता हूँ कि मैंने हिन्दू धर्मको समझने और उसकी भावना तथा उसके सिद्धान्तोंको अपने जीवन में उतारनेकी भरसक कोशिश की है, पर उसमें मुझे कहीं भी अस्पृश्यताके इस अभिशापका कोई समर्थन नहीं मिला। यदि हम किसी कु जाति-विशेषमें जन्म लेनेके आधारपर किसी भी मनुष्यको अस्पृश्य मानते हैं तो हम ईश्वर और मानव जातिके प्रति अपराध करते हैं।

एक और भी प्रश्न है कि जिसका अस्पृश्यताके साथ बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है। वह है शराबखोरीका प्रश्न । यदि ऊँचे कहलानेवाले वर्गोंके लोग तथाकथित निचले वर्गोंके लोगोंके साथ भाईचारेका बरताव करने लगें तो हमारे इस सुन्दर देशको शराबखोरीके कलंकसे मुक्त किया जा सकता है। मैंने शराबबन्दीके लिए वर्षोतक काम किया है, परन्तु इस क्षेत्रमें भी मेरा अपना कटु अनुभव यही बतलाता है कि सरकारकी सहायताके बिना अधिक कुछ नहीं किया जा सकता। मिलनेपर अज्ञानी लोग तो शराब पी ही लेंगे। संसारमें यदि किसी देशमें पूरी तरह शराबबन्दी की जा सकती है, तो वह भारत ही है। इसका सीधा-सा कारण यही है कि सौभाग्यवश हमारे यहाँ अभीतक शराबखोरीकी लत बुरी ही मानी जाती है; उसे अब भी