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भाषण : बंगलोरके नागरिकोंकी सभामें

पतनकारी समझा जाता है। अपने दौरोंमें मैं हजारों आदि कर्नाटकोंसे मिला हूँ । लम्बानी लोगोंके एक जत्थेसे भी मेरी भेंट हुई थी। मैंने उनसे बिलकुल सीधे-सीधे कुछ प्रश्न किये थे। उनमें से किसीने भी शराबखोरीके समर्थन में हाथ नहीं उठाया । और उनमें से एक बड़े हिस्सेने गोमांस और शराब दोनोंसे ही दूर रहनेकी प्रतिज्ञा की है। ईश्वर उनको इस प्रतिज्ञापर अटल रहनेकी शक्ति दे। पर मैं आपसे और सरकारसे इस काम में उनकी मदद करनेका अनुरोध करता हूँ। इस मार्गमें कठिनाइयाँ और बाधाएँ तो अनेक हैं, पर मनुष्य उनका सामना करने और उनपर पार पाने के लिए ही तो बना है।

अन्त में, मैं आपका ध्यान बाल-विधवाओं और बाल-वधुओंकी दशाकी ओर आक षित करना चाहता हूँ। हमारे लिए दुःख और शर्मकी बात है कि उनको भी मूक प्राणियोंकी कोटिमें डाल दिया गया है। जहाँ कहीं भी यह कलंक हो, उसे यदि मिटाया नहीं जाता तो हमारी सारी जागृति, हमारी सारी शिक्षा-दीक्षा मिट्टीके बराबर है। आपके यहाँका नागरिक और सामाजिक प्रगति संघ (सिविक ऐंड सोशल प्रोग्रेस एसोसिएशन) इस कामको हाथ में ले सकता है ।

मैं चाहता हूँ कि मैसूर वास्तव में एक ऐसा आदर्श राज्य बन जाये, जिसे हम रामराज्य कह सकें। इसी दृष्टिसे मैंने आपके सामने कुछ सुझाव रखे हैं जो, मेरे विचारसे इसे आदर्श राज्य बनानेके लिए अमलमें लाये जाने चाहिए। आशा है कि इन सुझावों को पेश करने के कारण आप मुझे कृतघ्न नहीं समझने लगेंगे। इसका यह अर्थ भी नहीं कि मैंने यहाँकी जो खामियाँ बतलाई हैं, वे भारतके अन्य हिस्सोंमें नहीं पाई जातीं। खेदके साथ कहना पड़ता है कि अन्य हिस्सोंमें भी ये खामियाँ जरूर हैं; इतना ही नहीं, कहीं-कहीं तो ये और भी भयंकर रूप में मौजूद हैं। परन्तु मेरा सौभाग्य है कि मैंने यहाँ मैसूरमें कई क्षेत्रोंमें अन्य राज्योंकी अपेक्षा अधिक प्रगति देखी है और इसी कारण मुझमें यह इच्छा पैदा हो गई है कि यह और अधिक प्रगति करे ।

जो ज्यादा देते हैं, उनसे और ज्यादा देनेकी अपेक्षा की जाती है। इस राज्य में मैंने इतनी अधिक मात्रामें अच्छाई देखी है कि मैं तो यहाँतक सोचने लगा हूँ कि यदि आप लोग और महाराजा साहब मिलकर चाहें तो मैसूरको रामराज्य बना सकते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू २९-८-१९२७