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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अन्धविश्वासी मानकर उनके अनुभवोंको बिना सोचे-विचारे अस्वीकार न कर दीजिए । और अगर आप इतना करेंगे तो में और जो-कुछ कहना चाहता हूँ वह-सब बिल- कुल साफ-साफ समझ में आ जायेगा । इसे मैं इस बातकी कसौटी मानूँगा कि आप जो-कुछ कहते हैं, हृदयसे कहते हैं। यदि ईश्वरमें आपकी सच्ची आस्था है तो आप सृष्टिके तुच्छसे-तुच्छ प्राणीतक के लिए सहानुभूति अनुभव किये बिना नहीं रह सकते। और आप देखेंगे कि चाहे चरखा और खादी-सम्बन्धी प्रवृत्ति हो या अस्पृश्यता और पूर्ण मद्य निषेध-सम्बन्धी काम हो अथवा बाल-विधवाओं और बाल-वधुओंकी समस्याओं- जैसी सामाजिक बुराइयोंको दूर करनेसे सम्बन्धित कार्य हों, सबका स्रोत एक ही है। इसलिए मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि आप कताई-आन्दोलन, अस्पृश्यताके खिलाफ संघर्ष और जिन अन्य कार्योंको मैंने अपनाया है, उनके प्रति आपकी सहानुभूति है। मैं आपके इस आश्वासनको स्वीकार करता हूँ कि आजसे आप खादी- के हकमें और अधिक प्रयत्न करेंगे।

सच पूछिए तो आपके लिए एक ही बार सदाके लिए ऐसा निर्णय कर लेना बहुत ही आसान है; आप अपने मनमें कहिए कि आजसे में खादीके अलावा और किसी कपड़ेका इस्तेमाल नहीं करूंगा, क्योंकि इससे उन लोगोंकी जेबमें ताँबेके चन्द सिक्के जाते हैं जिन्हें उनकी बहुत ज्यादा जरूरत है। मुझे मालूम हुआ है, सिर्फ इस एक संस्था में ही आप १,४०० से अधिक विद्यार्थी हैं। आप जरा सोचकर देखिए कि यदि आप १,४०० विद्यार्थी रोज सिर्फ आधा घंटा कातें तो देशकी सम्पत्ति- में कितनी वृद्धि होगी। और यह भी सोचकर देखिए कि १,४०० लोग अस्पृश्योंके लिए कितना-कुछ कर सकते हैं, और यदि आप १,४०० नौजवान यह गम्भीर संकल्प कर लें, और आप ऐसा कर सकते हैं, कि हम छोटी उम्रकी लड़कियोंसे विवाह नहीं करेंगे तो सोचिए कि आप अपने आसपास के समाज में कितना बड़ा सुधार ला सकते हैं। यदि आप १,४०० विद्यार्थियों में से सबके-सब, या सबके-सब नहीं तो एक खासी तादादमें भी अपने अवकाशके घंटों या रविवारके कुछ हिस्सेका उपयोग शराबखोरोंसे मिलकर उन्हें अधिकसे-अधिक प्रेम और दयापूर्वक समझाने-बुझाने और इस तरह अपनी बात उनके हृदय में उतारनेमें करें तो सोचिए कि आप उनकी और देशकी कितनी बड़ी सेवा करेंगे । और यह सब आप आजकी दूषित शिक्षा प्रणालीके बावजूद कर सकते हैं। आपको इसके लिए करना भी क्या है ? सिर्फ अपने हृदयको बदलना है, और अगर राजनीतिक क्षेत्रमें प्रचलित मुहावरेका प्रयोग करूँ तो अपना 'दृष्टिकोण' बदलना है ।

मैं चाहता हूँ कि आप इस अवसरसे लाभ उठाइए, और यदि आप, आज शाम हम जिस गम्भीर परिस्थिति में यहाँ एकत्र हुए हैं तथा जिसके उल्लेखसे मैंने अपना भाषण आरम्भ किया, उसे समझें तो आप इस अवसरसे लाभ उठा सकते हैं। यदि कोई सांसारिक व्यक्ति अपने परिवार में शोक-प्रसंग आ जानेके कारण ऐसे समारोह में उपस्थित न हो तो उसके लिए वह उचित ही होगा और दुनिया भी उसके इस व्यवहारको उचित ही मानगी । कोई व्यक्ति ऐसा दुःख पड़नेपर उदास होकर उस-