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पत्र : टी० आर० महादेव अय्यरको

पर सोचते रहने के बजाय उसको दूसरा रूप दे दे, उससे ईश्वर और मानवताकी सेवा करनेको प्रेरित हो, इसमें निश्चय ही एक महानता है, एक भव्यता है। ऐसा हर काम हमें मानव-मात्रकी तात्त्विक एकताका बोध कराता है। ईश्वर आपको मेरी बातें समझनेकी शक्ति दे। एक बार फिर मैं आपके द्वारा भेंट किये गये मानपत्र और थैली तथा आपने जो-कुछ कहा है, उसके लिए आप लोगोंको धन्यवाद देता हूँ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ८-९-१९२७

३८८. पत्र : टी० आर० महादेव अय्यरको

कैम्प वेल्लूर
३१ अगस्त, १९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मैं तो फिर वही कहूँगा जो पहले कह चुका हूँ, अर्थात् यह कि आप कब्जा छोड़ दें, यही अच्छा है। जिन लोगोंके बारेमें आपको लगता है कि वे आपके दृष्टिकोणसे सहमत हैं, उनको यदि आप समय रहते अपना कब्जा छोड़नेका इरादा बता दें तो फिर कब्जा छोड़ना आपके लिए नैतिक दृष्टिसे बिलकुल ठीक होगा। इसकी सूचना न देने और सम्पत्तिको अपने कब्जेमें रखनेका औचित्य तो मेरे विचारसे किसी भी तरह नहीं ठहराया जा सकता । जहाँतक मैं कमेटीके इरादोंको समझ सका हूँ, वह एक ऐसे मामलेको पंच-फैसलेके लिए नहीं सौंपना चाहती जिसके बारेमें वह न कोई नैतिक हिचक महसूस करती है और न जिसके बारेमें उसके सामने कोई कानूनी कठिनाई ही है।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १२९४१) की माइक्रोफिल्मसे।