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३८९. भाषण : वेल्लूरकी सार्वजनिक सभामें[१]

[ ३१ अगस्त, १९२७ ][२]

सभापति महोदय और मित्रो,

मानपत्रों और दो हजार एकसे कुछ अधिक रुपयोंकी इस थैलीके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। तमिलनाडुका मेरा खादी-दौरा वास्तव में वेल्लूरसे ही शुरू हो रहा है। पिछले सप्ताह मैं कृष्णगिरि और होसर गया था, जो तमिल प्रदेशमें ही हैं। लेकिन उन नगरोंके दौरेको मैसूरके कार्यक्रमका हिस्सा माना जा सकता है। वेल्लूर पहुँचने- पर मुझे इस स्थानकी अपनी पहली यात्रा याद हो आई जब मैं मौलाना शौकतअलीके साथ यहाँ आया था। जोश-जनूनके उन दिनोंको याद करते हुए जब में आजकी इस सभाको देखता हूँ तो मेरा मन बरबस खिन्न हो जाता है - इसलिए नहीं कि आपका व्यवहार कुछ अनुचित रहा है, बल्कि यह सोचकर कि उत्तर भारत में आजकल क्या चल रहा है। सच तो यह है कि जब में देखता हूँ कि जीवनकी सहज गतिमें व्यवधान पैदा कर देनेवाले वैसे झगड़े आपके यहाँ नहीं हैं तो मेरा सन्ताप बहुत कुछ कम हो जाता है। आपके बीच आकर जब में देखता हूँ कि उत्तर भारत में हमारे देश- भाई जो हरकतें कर रहे हैं, उनका आपपर कोई असर नहीं पड़ा है और आप विचलित नहीं हुए हैं, तो मेरी आशावादिता और दृढ़ हो जाती है। जबतक ईश्वर- पर मेरी आस्था है, मेरी यह आशावादिता बनी रहेगी, फिर चाहे देश-भरमें हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरेकी जानके गाहक ही क्यों न बन बैठें। भगवान् न करे ऐसा हो, लेकिन अगर हो तो भी मैं समझता हूँ मेरे अन्दर इतनी ही शक्ति रहेगी जितनी आज है में अपनी ओरसे सरेआम कह सकूंगा कि एक दिन जरूर ऐसा आयेगा जब हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरेके साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने देशकी आजादीके लिए संघर्ष करेंगे और सदा भाइयोंकी तरह एक होकर रहेंगे। मैं चाहता हूँ कि आप वेल्लूरवासी भाई और बहनें सभी अपने मन में ऐसा ही विश्वास सँजोयें । मुझे इस बातमें तिल-भर भी सन्देह नहीं कि आगे आनेवाली पीढ़ियाँ हमारी इस बर्बरतापर हँसेंगी और अपने मन में सोचेंगी कि हम लोग कितने मूर्ख और कितने पागल थे कि ईश्वरकी दुहाई देकर एक-दूसरेको कत्ल करने लगते थे । पर आप जानते ही हैं कि में खद्दर और चरखे के सवालको उतना ही महत्त्व देता हूँ जितना कि हिन्दू-मुसलमान एकताको । दरिद्रनारायणकी खातिर कातना और इसी कारण खादीके अतिरिक्त कोई और वस्त्र इस्तेमाल न करना भी ईश्वरका ही काम है । इससे ईश्वर उतना ही प्रसन्न होगा जितना कि हिन्दुओं और मुसलमानोंके एक रहनेसे। जिस प्रकार हिन्दू-मुसलमान एकता दोनोंको एक सूत्रमें बाँधती है, उसी

  1. सभा गांधी मैदान में आयोजित की गई थी और गांधीजीके भाषणका तमिल अनुवाद च० राज- गोपालाचारीने प्रस्तुत किया था।
  2. देखिए “भाषण : कृष्णगिरिमें ", २४-८-१९२७