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भाषण : वेल्लूरकी सार्वजनिक सभामें

तरह चरखेपर काता हुआ सूत भी भारतके करोड़ों गरीबोंको हमारे मध्य वर्गके लोगोंके साथ बांधता है। वर्तमान स्थिति यह है कि हम ग्रामवासियोंका गला तो नहीं काटते पर यह भी बिलकुल सही है कि हम एक तरहसे उनका रक्त चूसते हैं। उनका रक्त चूसनेका, प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ही किस्मका, दायित्व हमारे ऊपर है। हम मध्य वर्ग के लोग ही हैं, जिन्होंने ग्रामवासियोंको आज सतत भुखमरीकी हालत- तक पहुँचा दिया है। उनकी इस दशाके लिए व्यापारियोंकी हैसियतसे सीधी जिम्मे- दारी हम लोगोंपर है; इसलिए कि हम लोगोंने उनके पवित्र हाथोंसे तैयार किये गये वस्त्रकी खरीद और बिक्री न करके स्वयं एक ऐसे देवताकी पूजा की जो उन लोगोंकी बलिसे ही प्रसन्न होता है। इस तरह हमने अपने हाथ विदेशी वस्त्रोंसे दूषित कर लिये और हमने विदेशी वस्त्रोंकी बिक्री शुरू कर दी। मैं इसे भुखमरीसे पीड़ित उन करोड़ों बेजुवान लोगोंके साथ विश्वासघात मानता हूँ। व्यापारियोंके अतिरिक्त मध्य वर्गके अन्य लोग भी ग्रामवासियोंकी भुखमरीके लिए परोक्ष रूपसे जिम्मेदार हैं, क्योंकि वे अपने ही लोगों द्वारा तैयार किये गये पवित्र वस्त्रोंकी जगह इन व्यापारियों द्वारा बेचे जानेवाले बढ़िया विदेशी वस्त्रोंको खरीदनेका लोभ संवरण नहीं कर पाये। और आपने जो थैली दी है, उसको में एक प्रतीक मात्र मानता हूँ-- हमने जो पाप किये हैं उनका प्रायश्चित्त करनेकी इच्छाका प्रतीक-भर मानता हूँ। लेकिन मैं आपसे सच कहता हूँ कि यह प्रायश्चित्त तबतक सार्थक नहीं होगा जबतक कि सभी व्यापारी अपने कदम पीछे नहीं हटाते, विदेशी वस्त्रोंकी बिक्री बन्द नहीं कर देते और जबतक वे और अन्य सभी लोग खद्दरको नहीं अपना लेते, चाहे खद्दर कितना ही मोटा-झोटा या महँगा क्यों न हो। वास्तविक प्रायश्चित्त के लिए कोई भी बलिदान बहुत बड़ा नहीं होता। और मेरी हार्दिक इच्छा है कि तमिलनाडके दौरेके इस पहले नगर- से जाते समय मेरा मन इस विषय में आश्वस्त हो जाये कि आप लोगोंके मन में भी अपने देशके भूखे-नंगे लोगोंके प्रति उतनी ही वेदना और सहानुभूति है जितनी कि मेरे हृदय में है और आप लोग भी हम सब लोगोंके पापोंके प्रति उतने ही जागरूक हैं, जितना कि में। मेरा यह अनुरोध दायें बाजू बैठी बहनोंसे भी उतना ही है, जितना कि बायें बाजू और सामने बैठे भाइयोंसे। वेल्लूरकी नारियोंको सीताके पवित्र चरणोंसे पुनीत बनी इस भारत भूमिकी पुत्रियाँ कहलाने योग्य बनना चाहिए। भारत में हम स्त्री-पुरुष बड़े सुबह उठकर सीताका पवित्र नाम सात महान् सतियोंके साथ स्मरण करते हैं। यदि हम सीताकी सादगी और पवित्रताका अनुकरण न करें, तो हमें उनका नाम जपनेका क्या अधिकार है? अपने देशके गाँवोंमें बना खद्दर पहनना हमारे लिए उतना ही स्वाभाविक होना चाहिए जितना कि होटलोंमें बने, बढ़ियासे बढ़िया व्यंजन मुफ्त भी मिलें तो उनको छोड़कर अपने हाथ से अपना भोजन तैयार करना और खाना होता है।

अस्पृश्यताको समस्याको भी मैं उतना ही महत्त्व देता हूँ। हम हिन्दू लोग जबतक एक भी व्यक्तिको जन्मके आधारपर अस्पृश्य मानते रहेंगे, तबतक हमारे धर्म और हमारी प्रतिष्ठाको खतरा बना रहेगा। मनुष्य होने के नाते उनको भी हमारे मन्दिरोंमें प्रवेश करनेका, हमारे स्कूलोंमें अपने बच्चोंको भेजनेका और एक ही कुएँ या