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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

संस्थामें रख दे, जहाँ वह शिक्षा प्राप्त कर सके और परिपक्व अवस्था प्राप्त करनेपर उसे स्वयं यह निर्णय करनेका अधिकार दे दे कि चाहे तो वह पति के साथ रहे या कि विवाह सम्बन्धको बिलकुल रद माने ? हमारा समाज आज जिस अधोगति में पड़ा हुआ है, उसके कारण ऐसा कदम उठाना सम्भव हो या न हो, पर समाजमें खरे चरित्रवाले कुछ नवयुवक तो निश्चय ही अपनी एक परोपकारी टोली बना सकते हैं और बाल-विवाहोंको रोकने तथा जहाँ भी सम्भव हो बाल-विधवाओंके पुनर्विवाह कराने के लिए सभी उचित एवं वैध उपायोंसे काम लेनेकी प्रतिज्ञा कर सकते हैं । मेरे खयालसे दोनों चीजें साथ-साथ ही चल सकती हैं। ऐसी टोलीका काम तभी ज्यादासे-ज्यादा कारगर होगा जब वह अपना कार्यक्षेत्र अपने नगर या गांवतक ही सीमित रखे। तब वे देखेंगे कि कुछ ही वर्षोंमें उनकी शक्ति अपराजेय बन गई है। हमारे देशके अधिकांश कस्बोंकी जनसंख्या थोड़ी ही है, इसलिए अपने-अपने कस्बोंमें पत्र-लेखक द्वारा वर्णित ढंगकी अनैतिक सौदेबाजीकी या बाल-विधवाओंकी संख्याकी जानकारी हासिल करना कोई कठिन काम नहीं है। पर इसमें भी सन्देह नहीं कि ऐसी टोलियोंके लोगोंको नीति चातुर्य और आदर्श आत्म-संयमसे काम लेना पड़ेगा। यदि वे हड़बड़ी या हिंसाकी ओर तनिक भी झुके तो जनता उनसे रुष्ट हो जायेगी और उनका अपना उद्देश्य ही विफल हो जायेगा ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १-९-१९२७

३९१. कहीं हम भूल न जायें

गुजरातकी बाढ़की ओर सबका ध्यान खिच गया है, इससे कुछ ऐसी आशंका उत्पन्न हो गई है कि उड़ीसा और सिन्धकी विपदाको हम कहीं भूल न जायें । सिन्ध गुजरातसे शायद ज्यादा कष्टमें है और उड़ीसा तो सबसे ज्यादा संकट में है, क्योंकि यह सबसे कम संगठित और सबसे गरीब प्रान्त है। गुजरातने कार्यकर्त्ताओंका इतना बड़ा दल तैयार कर लिया है कि उससे श्रीयुत वल्लभभाई परेशानी में पड़ गये हैं। आखिरकार, सर्वत्र व्यापारीवर्ग ही तो ऐसा है जो अधिकसे-अधिक मुक्तहस्त होकर दान देता है और संकटके समय राहतका प्रबन्ध करनेमें सबसे अधिक सक्षम है। इसलिए जिन गुजरातियोंकी गुजरात में सहायता-कार्य के लिए जरूरत न हो या जिन्हें वहाँके कामसे फुरसत दी जा सकती हो वे उन स्थानोंकी ओर ध्यान दें जहाँ सहायता- की सबसे अधिक आवश्यकता है। गुजरात के संकटके कारण गुजरातियोंको दूसरे प्रान्तों- की जरूरतकी ओरसे अपनी आँखें बन्द नहीं कर लेनी चाहिए। वर्तमान संकटका लाभ उठाकर हमें कम प्रान्तवादी और अधिक राष्ट्रवादी बनना चाहिए। हमें इस देशमें रहनेवाले ईश्वरकी सृष्टिके तीस करोड़ मानवोंमें से गरीब-से-गरीब और हमसे दूरसे दूर रहनेवालों को भी अपना समझना चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १-९-१९२७