पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/५०६

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३९४. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

गुडियाथम
१ सितम्बर, १९२७

प्रिय सतीश बाबू,

साथमें जामिनी बाबूका पत्र भेज रहा हूँ। इसे पढ़कर फाड़ दीजिएगा। जामिनी बाबूकी जो ये तमाम अच्छाइयाँ प्रकट हो रही हैं, उससे मुझे बड़ी खुशी हुई। मैं जानता हूँ कि आप उनके साथ अधिकसे-अधिक नम्रतासे पेश आयेंगे।\

सस्नेह,

आपका,
बापू

अंग्रेजी (जी० एन० १५७५) की फोटो-नकलसे ।

३९५. पत्र : डॉ० कैलाशनाथ काटजूको

गुडियाथम (दक्षिण भारत)
१ सितम्बर, १९२७

प्रिय मित्र,

शरीरमें कमजोरी है। इस पत्रको बोलकर लिखानेकी यही सफाई दे सकता हूँ। कमजोरी न होती तो मैं बड़ी खुशीसे इसे स्वयं लिखता । आपके पत्र और खादी- चन्देकी पहली किस्तके लिए धन्यवाद । आपका पत्र बहुत सुन्दर है और दूसरोंको प्रभा- वित कर सकता है। यदि आपको कोई आपत्ति न हो तो खादीसे सम्बन्धित उसका अंश में प्रकाशित करना चाहूँगा। पर यदि आप किसी भी कारणसे अपने नामके साथ या बिना नाम दिये उस पत्रका प्रकाशन पसन्द न करते हों तो अनुमति देनेसे मना करने में तनिक भी संकोच मत कीजिए।

काले अलपाकेकी चपकनकी बात यह है कि आप अगर बनवानेका 'आर्डर' दें तो मैं आपके लिए बहुत ही बढ़िया काली खादीकी एक चपकन बनवा सकता हूँ । वह अलपाकेकी चपकन-जैसी ही लगेगी। आप शायद नहीं जानते होंगे कि मद्रासमें बहुत-से एडवोकेट और वकील भी जिनके बाकी कपड़े खादीके नहीं होते, खादीकी चपकने पहनते हैं। और चूंकि अब खादीकी चपकनें चल पड़ी हैं, इसलिए जिनकी वकालत अच्छी नहीं चलती, उनके लिए तो खादीकी चकपने सस्ती होने के कारण