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पत्र : कैलाशनाथ काटजूको

खास तोरसे अनुकूल रहती हैं। पर आपके लिए तो सस्ती खरीदनेकी बात सोचूंगा ही नहीं। आप 'आर्डर' देंगे तो मैं आपके लिए सबसे सस्ती नहीं, बल्कि सबसे महँगी और नफीस चीज ही बनवाऊँगा।

अब खुद कातनेकी बात लीजिए। मैं आपकी इस बातसे बिलकुल सहमत हूँ कि खद्दरसे प्रेम रखने के लिए यह जरूरी नहीं कि आदमी खुद कताई करे ही। लेकिन करोड़ों क्षुधार्त लोगोंसे प्रेम रखनेके लिए तो जरूरी है। इसके दो कारण हैं : पहला यह् कि खुद कताई करनेसे गरीब जनताके साथ हमारा नित्यप्रति का सम्बन्ध कायम होता है; दूसरा यह कि समाजका हर जाना-माना सदस्य जब अपने हाथसे कताई करता है तो उससे कताईका एक वातावरण बनता है, जिससे कताईमें विश्वास न रखनेके कारण कातनेके अनिच्छुक ग्रामीण लोगोंको कातनेके लिए तैयार करने में कार्य- कर्त्ताओंको आसानी होती है। मैं एक तीसरा कारण और बताता हूँ, जो आप नापसन्द नहीं करेंगे। अच्छी तरह कते हुए सूतके हर गजके साथ देशकी सम्पदामें वृद्धि अवश्य होती है, चाहे वह वृद्धि बहुत ही सूक्ष्म क्यों न हो। आप जानते ही हैं कि कच- हरियोंमें अपनी बारीका इन्तजार करते हुए वकील क्या करते हैं। वे अपनी पेंसिलों या कागज बांधने के फीतोंसे खेल करते रहते हैं और नहीं तो समय काटनेका इससे भी बुरा तरीका यह अपनाते हैं कि अपने कलम या चाकू खोलकर उनसे सामनकी डेस्कपर खोदते रहते हैं। पता नहीं, आप राजी होंगे या नहीं, लेकिन मेरा तो जी चाहता है कि ऐसे समय के लिए आपको भी नन्हीं-सी तकलीको अपनाने के लिए राजी कर सकूँ तो अच्छा हो । तकली चाँदी या सोने अथवा आप चाहें तो हाथी दाँतकी भी बनवाई जा सकती है और उसे एक सुन्दर और हलकी-सी खोलीमें रखा जा सकता है। तकली चलाना आसानीसे आ भी जाता है। क्या आप इसे अपनायेंगे? में जानता हूँ कि शुरूमे लोग इसपर हँसेंगे। फिर एक अवस्था ऐसी आयेगी जब लोग इसे न उपहाससे देखेंगे और न प्रशंसाकी दृष्टिसे। और अगर आप इन दोनों अवस्थाओंको पार कर जायेंगे तथा तकलीको अपनायेंगे तो अन्तमें दूसरे लोग भी आपका अनुकरण करने लगेंगे। आशा है, आप मेरे यह सब कहनेका बुरा नहीं मानेंगे। आपने मुझे हार्दिक सद्भावनाके साथ थोड़ा-कुछ दिया है और यदि अब मैं और ज्यादाकी माँग करने लगूं तो आपको ताज्जुब नहीं करना चाहिए।

सचमुच मैंने वकीलोंसे बड़े-बड़े त्यागकी मांग की थी। लेकिन १९२० और १९२१ के दिनोंकी याद करके मुझे लगता है कि मेरी माँग कोई बहुत असाधारण नहीं थी और में महसूस करता हूँ कि किसी समय में जिन लोगोंका हमपेशा था, उनसे सबसे अधिक त्यागकी माँग करनेका मुझे पूरा अधिकार था।

छोटे-छोटे बच्चे अब बड़े होकर मेरी गोद में बैठनेमें शरमाने लगे हैं। खैर, उनसे इतना करानेकी कृपा कीजिए कि में जब भी उनसे मिलूंगा उनको मुझे अब भी याद करनेकी कीमत चुकानी ही पड़ेगी।