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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मोटी है और अभी मेरे सामने पड़ी हुई है। इस मोटी पुस्तकको पढ़नेके खयाल-भरसे ही घबरा उठना स्वाभाविक है और खासकर तब जब कि मैंने अपना एकएक क्षण उस काम के लिए दे रखा है जो मेरे हाथमें है और जिसे करना मुझे बिलकुल जरूरी लगता है। इसलिए इस मोटी पुस्तकको पढ़ने के बजाय पत्रों द्वारा अपने अनुभवोंके आधारपर तुम मुझे आहारके विषय में जो सबक दे रहे हो, उससे मुझे कहीं अधिक लाभ होगा ।

संकेत-लिपिका नया विचार मुझे ठीक लगता है । और अगर आश्रम में कोई इस कामको सीखे तो इसपर खर्च करनेमें मुझे कोई अड़चन नहीं होगी । इसलिए तुम आश्रमके लोगोंको यह बात समझाना |

सबको स्नेह - बन्दन ।

तुम्हारा,

श्रीयुत आर० बी० ग्रेग

मार्फत / श्रीयुत एस० ई० स्टोक्स
कोटगढ़

शिमला हिल्स

अंग्रेजी (एस० एन० १४१६१ ) की फोटो - नकलसे ।

१२. पत्र : मिर्जा एम० इस्माइलको

कुमार पार्क,बंगलोर
१६ जून,१९२७

प्रिय मित्र,

मैसूरकी प्रतिनिधि सभा (रिप्रजेंटेटिव एसेम्बली) में दिये गये आपके भाषणको प्रति और पत्र मिला। इस कृपाके लिए मैं आपका आभारी हूँ। थोड़ीसी फुरसत मिलते ही मैं इसे पूरा पढ़ जाऊँगा। अस्पृश्योंसे सम्बन्धित जिस अंशपर आपने निशान लगा दिया है, उसे तो मैं पढ़ भी गया हूँ । पढ़कर मन बड़ा प्रसन्न हुआ ।

जन्म-दिवसकी शुभकामनाओंके बारेमें भी आपका पत्र मिल गया था ।

अगले महीनेकी १५ तारीखसे पहले-पहले मैसूरकी यात्रा करनेकी उम्मीद रखता हूँ। तभी महाराजा साहबके भी दर्शन करनेका सौभाग्य प्राप्त करनेकी आशा करता हूँ ।

हृदयसे तुम्हारा,

श्री मिर्जा एम० इस्माइल
'लेक व्यू', मैसूर

[ पुनश्च : ]

अब मालूम हुआ है कि निशान यहीं लगाया गया था ।

मो० क० गांधी,

अंग्रेजी (एस० एन० १४१६२ ) की फोटो - नकलसे ।