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१४. पत्र : कुवलयानन्दको[१]

कुमार पार्क,बंगलोर
१६ जून,१९२७

प्रिय भाई,

अब पेट और हृदयपर मालिश करनेके बारेमें आपकी सारी बातें मेरी समझमें आ गई हैं। वैसे, आपको पत्र लिखनेके बादसे तो मैंने इसे जारी ही रखा है । मैं तो सिर्फ कुछ बातें, जो मेरी समझ में नहीं आ रही थीं, आपसे समझना चाहता था । आपको बता ही चुका हूँ कि अपने शरीरपर इन क्रियाओंका प्रयोग करने में मैं आप- पर पूरा भरोसा रखकर चलना चाहता हूँ । जबतक आपकी बताई बातें मेरी समझमें नहीं आयेंगी तबतक में अपनी शंकाएँ तो आपके सामने रखता ही रहूँगा, लेकिन वैसे आप जो कुछ बतायेंगे, मेरे लिए वह अन्तिम रूपसे मान्य होगा ।

इन यौगिक क्रियाओंको मैं पूरी तरह आजमाकर देखना चाहता हूँ। और किसी कारणसे नहीं तो इस कारणसे कि में उन्हें काय-चिकित्साका सबसे निरापद तरीका मानता हूँ ।

८ तारीखको पत्र[२] लिखने के बाद मैंने एक नया कदम उठाया है । आशा है, आप उसे जल्दबाजी नहीं मानेंगे। आपकी टिप्पणियोंको दो बार पढ़नेपर मैंने देखा कि आप चाहते हैं कि मैं अपने धड़को ३० अंश तकका कोण बनाते हुए ऊपर उठाऊँ इसलिए आपको पत्र लिखनेके तुरन्त बाद मैंने कोण बढ़ा दिया, लेकिन आपके निर्देशके अनुसार ५ मिनटतक ही उस स्थितिमें रहा। लेकिन, कोण ठीक ३० अंशका हो पाया या नहीं, इसके बारेमें खुद मेरे मनमें भी शंका है। कारण यह है कि अभी तक में ठीक माप दे सकनेवाला कोई साधन प्राप्त नहीं कर पाया हूँ । खाटको ऊपर उठानेसे जब मुझे सन्तोष नहीं हुआ तो मैंने एक तख्तेकी तलाश की। अब मुझे तख्ता मिल गया है । खाटकी सतह लकड़ीकी है । उसपर में तोशक नहीं बल्कि गद्दीदार नमदा बिछाता हूँ, और तख्तेकी सहायतासे उसीपर सर्वांगासन किया करता हूँ। पहलेकी अपेक्षा तो अब यह लाख दर्जे अच्छा लगता है। आसनके कोणका माप महादेव लेता है। उसका खयाल है कि मैं जिस कोणपर यह आसन करता हूँ वह ३० के बजाय ५० अंशके अधिक करीब होगा । मगर मुझे विश्वास नहीं होता कि वह ५० अंशका या ऐसा कुछ होगा। लेकिन जो भी हो, मुझे इसमें कोई कष्ट नहीं होता । आज इस आसन का चौथा दिन है, किन्तु अब भी ५ मिनटतक ही करता हूँ । रक्तचाप हर रविवारको देखा जाता है, और अगर में देखूंगा कि चापमें कोई वृद्धि हुई है तो उसका कारण में इसी क्रियाको मानूंगा और फिर आपका

  1. कुवलयानन्द द्वारा लिखे १४ जून, १९२७ के पत्रके उत्तरमें।
  2. देखिए खण्ड ३३ ।