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पत्र : कान्ति गांधीको

नहीं बन जाता अथवा जबतक तुम अपनी तपस्याके द्वारा उसे उसकी मोह-निद्रासे जगाने की योग्यता नहीं प्राप्त कर लेते तबतक तुम उसके पास नहीं जा सकोगे । किन्तु मेरे कहनेका मतलब यह नहीं है कि तुम मेरी सलाहको तत्काल मान ही लो । आज तक तो हरिलाल अपने दोषोंको स्वीकार करता रहा है और मुझसे कहता आया है कि वह उन्हें सुधारनेका प्रयत्न करेगा किन्तु अब तो उसने मेरे विरुद्ध अखबारों में पत्र लिखना शुरू कर दिया है। मैंने ये पत्र देखे तो नहीं हैं किन्तु इन पत्रोंका तात्पर्य मैं जानता हूँ । हरिलालका कहना है कि वह नहीं बल्कि में धर्मभ्रष्ट हो गया हूँ और बौद्ध धर्मका प्रचार कर रहा हूँ । उसकी राय में यह प्रचार मानव-जातिके लिए हानिकर है और इसलिए वह इसे कुकर्म मानता है । मेरे इस कुकर्मके विरुद्ध ही उसने विद्रोह किया है । और उसका इरादा मौका मिलते ही मेरे अनुचित प्रभाव- क्षेत्रसे तुम दोनों भाइयोंको दूर खींच ले जानेका है । उसके ऐसे विचारोंके कारण सम्भव है कि तुम दुविधा में पड़ जाओ । मेरे विचार सही हैं या कि हरिलाल जो विचार रखता है वे सही हैं, इस सम्बन्धमें यदि तुम्हारे मनमें तनिक भी शंका हो तो मैं चाहूँगा कि तुम अपने ऊपर मेरे विचारोंका असर न होने दो। अतः इस बारे में मेरी दूसरी सलाह यह है कि जिन अध्यापकोंकी देखरेख में तुम विद्याभ्यास कर रहे हो अथवा आश्रम में जिन बुजुर्गों के सम्पर्क में आते हो उनमें से जिनके प्रति तुम्हारे मनमें श्रद्धा हो उनसे तुम नम्रतापूर्वक यह बात पूछ देखना । अपनी सभी उलझनें उनके सामने रखना और वे जो सलाह दें तदनुसार चलना । यदि तुम मुझसे अपनी गुत्थियाँ सुलझानेको कहोगे तो मैं भी तुम्हारी सहायता अवश्य करूँगा । जिस गीताका हम सब लोग प्रतिदिन अध्ययन-मनन करते रहते हैं और तुम जिसे इतनी श्रद्धापूर्वक कण्ठस्थ करने तथा समझने की चेष्टा कर रहे हो, उसमें कहा गया है कि हम उनके पास जायें जिन्हें हम गुरुजनके समान मानते हों और उन्हें प्रणाम करके यत्न- पूर्वक अपनी समस्याओंको हल करवा लें और तदुपरांत वे जो कहें उसे सत्य मानकर श्रद्धापूर्वक उसपर अमल करें। मैं चाहता हूँ और मेरी यह सलाह है कि तुम ऐसा ही करो। किसी मामलेमें उतावली या बचपना मत करना । वर्तमान स्थितिमें तुम्हारा कर्त्तव्य क्या है, इसे समझने का प्रयत्न करना और उसका अनुसरण करते हुए दृढ़ता तथा हिम्मत से काम लेना । तुम्हें क्या भाता है उसका खयाल न करके सिर्फ इसी वातपर विचार करो कि तुम्हें क्या करना चाहिए। यह पत्र तुम जिन लोगोंको दिखाना चाहो, उन्हें दिखा देना । तुम्हारे उत्तरकी में प्रतीक्षा करूँगा । तुम दोनोंकी तबीयत कैसी रहती है, लिखना ।

बापुके आशीर्वाद,

गुजराती (सी० डब्ल्यू० ७७०३) की नकलसे ।

सौजन्य : कान्ति गांधी