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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

सवाल है, उसमें यह बात कोई महत्त्व नहीं रखती कि अमुक रकम किस प्रान्तसे प्राप्त हुई है।

हृदयसे आपका,

मन्त्री

अखिल भारतीय चरखा संघ

अहमदाबाद

अंग्रेजी (एस० एन० १९७८२ ) की माइक्रोफिल्मसे ।

२३. पत्र : रेहाना तैयबजीको

कुमार पार्क,बंगलोर
१६ जून,१९२७

प्रिय रेहाना,

तुम्हारे दो पत्र मिले। इस बातसे खुशी हुई कि तुमने अपने मनकी बात मुझे साफ-साफ बता दी है । इस तरह अपने मनकी बात साफ-साफ कह देनेसे ही अक्सर बड़ी शान्ति मिलती है। इसलिए विस्तारसे और मनमें जैसी प्रेरणा हुई, उस तरह से लिखनेके लिए क्षमा मत माँगो । यह जानकर खुशी हुई कि तुम्हें माताजीसे सादा लिबास पहननेकी इजाजत मिल गई है । मैं चाहता हूँ कि जिस तरह तुमने मुझसे दिल खोलकर अपनी बातें कहीं, उसी तरह पिताजी और माताजीसे भी कहो । अगर वे तुम्हारी बातोंको हँसकर उड़ाना चाहें, उनका उपहास करें अथवा कोधित होकर तुमको बिलकुल दबा देना चाहें तो भी तुम चिन्ता मत करना। इस सबको तुम अच्छी तरह प्रसन्न भावसे ग्रहण करना । उन्हें तो यह सब करनेका अधिकार है । जब वे तुम्हारा उपहास करने और तुमपर नाराज होनेके बावजूद यह देखेंगे कि तुम जो कुछ कहती हो, उसके पीछे गम्भीरता है, संकल्प है, तो वे पिघल जायेंगे और फिर तुम्हें, तुम जो चाहती हो, सो करने देंगे।युवक और युवतियाँ न जाने कितनी बार हवाई किले बनाती हैं, जो बादमें टूटकर बिखर जाते है। फिर तुम ऐसी अपेक्षा क्यों करो कि लोग तुम्हें अपवाद मानें? अगर तुम अपवाद हो तो तुम उपहास, घृणा, बल्कि इससे भी बदतर स्थितिको झेल लोगी और इस अग्नि- परीक्षासे और भी निखरकर निकलोगी। ईश्वर हमारी परीक्षा तो लेगा ही।

तुम्हें उस पोशाकको, जिसे माताजीने इतना समय लगाकर इतने प्यारसे तैयार किया था, छोड़नेपर दुःख हुआ । तुम्हारे इस दुःखमें मैं भी शरीक हूँ, लेकिन प्रेम तो आप ही अपना पुरस्कार होता है । और माता-पिताको ऐसी चीजोंको तैयार करवाने पर हुई परेशानीको लेकर तो कोई दुःख नहीं होता जो बादमें चलकर उनके बच्चोंके उपयोगके लायक नहीं रह जातीं। जब माताजीको यह विश्वास हो जाये कि तुम अब उन चीजोंको अपने लिए कभी नहीं चाहोगी तो उन्हें सुहेलाको दे देना।