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पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

मीरा रेवाड़ी छोड़ चुकी है और आजकल बंगलोर आई हुई है । कुछ दिन यहाँ रहकर वह अपना हिन्दीका ज्ञान दुरुस्त करनेके लिए वर्धा चली जायेगी ।

यहाँके मौसमका वर्णन करनेके लिए मेरे पास काव्यात्मक भाषा नहीं है, लेकिन इन दिनों तो यहाँ मौसम सुहावना होता ही है। बेशक यहाँ हिमालय नहीं है । लेकिन मेरा खयाल है, तुम बंगलोरके बारेमें मुझसे कहीं ज्यादा जानती हो । मेरे स्वास्थ्य में सुधार जारी है ।

सस्नेह -

तुम्हारा,
बपु

अंग्रेजी (एस० एन० ९६०३) की फोटो - नकलसे ।

२४. पत्र: सी° एफ° एंड्रयूजको

कुमार पार्क,बंगलोर
१९ जून,१९२७

तुम्हारे संक्षिप्त पत्र मिले। लेकिन मैं उनमें तुम्हारे दुःखकी और उस दुःख पर तुम्हारी विजयकी झलक साफ देख सकता हूँ । तुम हर तरहके आरोपों और व्यंग्योंके अभ्यस्त हो । शास्त्री आजकल वहीं हैं । इसलिए मुझे उम्मीद है कि तुम उनके साथ एक-आध महीना रहने के बाद वापस लौट आओगे। कितना अच्छा होता, अगर तुम मेरे साथ बंगलोर होते ! तब तुम मेरे पहरेदार होते और यहाँके शानदार मौसमका आनन्द लेते। इस समय तो राजगोपालाचारी और गंगाधरराव मेरे पहरेदार हैं। मैं उनसे बहुत कम मिल पाता हूँ। वे मुलाकातियोंको मेरे पास लाने या मेरे पाससे ले जानेके समय ही सामने आते हैं। उनकी कठिनाइयोंके बारेमें और वे परेशानियोंसे मुझे किस तरह बचाते हैं, इसके सम्बन्धमें मुझे कुछ भी मालूम नहीं है । जैसा कि स्वयं राजगोपालाचारीने अपनी ताजा कहानीमें[१] लिखा है, "अमीरों या बड़े लोगोंकी बीमारीका भी अपना एक अलग मजा, एक अलग आकर्षण है ।

बीमारी मनुष्यको कैसा लाचार बना देती है, इसका अनुमान तो केवल गरीब आदमीको ही हो पाता है । यहाँ जो असंख्य छोटी-मोटी क्लेशप्रद बातें होती हैं, उनके बारेमें मैं तुम्हें कुछ नहीं लिखूंगा । तुम्हारी वहाँकी परेशानियाँ ही क्या कम हैं! यह पत्र तो मैंने तुम्हें यह भरोसा दिलाने के लिए लिखा है कि तुम्हारा खयाल मेरे मन में बराबर बना रहता है ।

हृदयसे तुम्हरा,

अंग्रेजी (एस० एन० १२३६२ ) की फोटो नकलसे ।

  1. २३-६-१९२५ के यंग इंडियामें प्रकाशित ।