पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/६८

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२५. पत्र : हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्यायको

कुमार पार्क,बंगलोर
१९ जून,१९२७

प्रिय भाई,

पत्र तो आपको, कविवरको लिखना चाहिए था, मगर उन्हें लिखनेके बजाय मुझको लिखकर क्या आपने अनजाने ही भूल नहीं की है ? या कि आप सचमुच ऐसा समझ बैठे हैं कि मैं यूरोपके साहित्यिक व्यक्तियों और कलाकारोंको जानता हूँ । यदि ऐसा है तो यहाँ "दूरके ढोल सुहावने" वाली बात ही समझिए । रोमां रोलां तकसे मेरा पत्र व्यवहार कभी-कदाच हो होता है । मेरा खयाल है कि मैंने उन्हें दो से अधिक पत्र नहीं लिखे हैं । यूरोपसे मुझे पत्र लिखनेवाले सभी लोग 'यंग इंडिया' के आम पाठक हैं। मुझे तो उनके नाम भी याद नहीं हैं, और सम्भव है कि उनमें आपकी कल्पनासे मेल खानेवाला कोई भी न हो। तो अब बताइए कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय

कोडियालबेल- डाकघर

बंगलोर

अंग्रेजी (एस० एन० १२७७३) की फोटो नकल से ।

२६. पत्र : मोतीलाल नेहरूको[१]

कुमार पार्क,बंगलोर
१९ जून,१९२७

प्रिय मोतीलालजी,

पत्र तो मुझे अब भी बोल कर ही लिखवाना है, लेकिन इसे मेरी शारीरिक कमजोरीका कोई संकेत न माना जाये । बात सिर्फ इतनी ही है कि डाक्टर की सलाहका अक्षरश: पालन करते हुए मैं भावी उपयोगके लिए शक्ति संचित कर रहा हूँ । इससे शक्ति-संचय होता है या नहीं, यह तो समय आनेपर ही मालूम होगा ।

आपका तार मिला। अगर गर्म प्रदेशोंसे होकर यात्रा करनेकी परेशानी आप बरदाश्त कर सकते तो निश्चय ही आपको वह परेशानी उठानेका पूरा पुरस्कार मिल

  1. मोतीलालजीके ११ जूनके पत्रके उत्तरमें