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पत्र : मथुरादासको

जाता और आप मध्य भारतकी गर्मीको भूल जाते । मैं सोचता हूँ कि क्या वकालतका काम इलाहाबादसे बाहर नहीं किया जा सकता । फीरोजशाहके मुवक्किल तो, वे जहाँ- कहीं जाते थे, लाचार होकर वहीं पहुँच जाते थे । निःसन्देह, इसमें मुवक्किलोंके साथ अन्याय होता था । तथापि मेरे मन में यह सवाल उठता है कि अगर आप स्वास्थ्य- सम्बन्धी कारणोंसे जिस किसी ठंडी जगह में जायें, अपने मुवक्किलोंको वहाँ आनेका कष्ट दें तो क्या इसमें कुछ अनुचित है ।

कांग्रेसका तो जो रंग-ढंग है, उससे मेरी यह राय और भी दृढ़ होती है कि अभी जवाहरलाल द्वारा उस भारको[१] उठानेका समय नहीं आया है । कांग्रेस में हुल्लड़- बाजी और अव्यवस्थाकी जो प्रवृत्ति उभरती दिखाई दे रही है, उसे जवाहरलाल- जैसा महामना व्यक्ति बरदाश्त नहीं कर सकता, और उससे इस अव्यवस्थाके स्थान- पर आनन-फानन व्यवस्था स्थापित कर देनेकी अपेक्षा करना तो उसके साथ अन्याय करना होगा। लेकिन, मुझे पूरा विश्वास है कि यह अराजकता शीघ्र ही अपने-आप समाप्त हो जायेगी और तब हुल्लड़बाज लोग खुद ही किसी अनुशासनप्रिय व्यक्तिकी जरूरत महसूस करेंगे। जवाहरलालके आगे आनेका उपयुक्त समय वही होगा। फिल- हाल तो हमें इसके सूत्र संचालनका काम अपने हाथों में लेनेका आग्रह डा० अन्सारीसे ही करना चाहिए। वे हुल्लड़बाजोंपर अंकुश तो नहीं रख सकेंगे । वे उन्हें अपने मनकी करने देंगे, लेकिन सम्भव है, वे हिन्दू-मुस्लिम सवालके बारेमें महारत हासिल करके उस सिलसिले में कुछ कर दिखायें। अगले वर्ष भरके लिए तो उनके लिए इतना काम ही काफी होगा कि वे इस लगभग लाइलाज समस्याको हल करें ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १२८६७) की फोटो - नकल से ।

२७. पत्र : मथुरादासको

बंगलोर
ज्येष्ठ बदी ५ [२० जून,१९२७][२]

भाई मथुरादास,

तुम्हारा पत्र मिला । ब्रह्मचर्य व्रतका तुम्हारा निश्चय अटल रहे तथा ईश्वर तुम्हें उसके पालनकी शक्ति प्रदान करे। क्या यह व्रत तुम दोनोंने एक-दूसरेकी स्वेच्छा- पूर्ण सहमतिसे लिया है ? यदि ऐसा है तो इस व्रतके पालनमें आसानी होगी ।

खादीका कार्य करते हुए तुम हार मत मानना; यह तो एक प्रकारकी तपस्या है । यदि सारी दुनिया झूठ बोलने लगे तो भी जिस प्रकार हम अपनी सत्यनिष्ठा, सत्यका पालन करना या उसका प्रचार करना छोड़ नहीं देते उसी प्रकार हमें

  1. कांग्रेसके अध्यक्ष-पदको सँभालनेका भार ।
  2. सन् १९२७ में गांधीजी इस दिन बंगलोर में थे। ३४-३