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पत्र: अब्बास तैयबजीको

तथा गोपियाँ हैं अनेक इन्द्रियाँ । आत्मसंयमी व्यक्ति इन इन्द्रिय-रूपी गोपियोंको जैसे चाहे वैसे नचाता है ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी ।

सौजन्य : नारायण देसाई

३१. पत्र : अब्बास तैयबजीको

कुमार पार्क,बंगलोर
२१ जून,१९२७


प्यारे भुर्ररर[१],

देर आयद दुरुस्त आयद । आखिर आपका पत्र मिल ही गया । मेरी समझमें नहीं आता कि शादी-विवाह में इतना समय और धन क्यों खर्च किया जाये, इतनी परेशानी किसलिए उठाई जाये और क्यों अपने बाल-बच्चोंके विवाहों में होनेवाली समयकी बर्बादी और परेशानीके कारण ७० वर्षके जवानको भी बूढ़ा दिखने लगना चाहिए ? विवाहमें ऐसी क्या खास बात है कि माता-पिता और बच्चे फूले न समायें और खुशी से लगभग पागल हो उठें ? क्या यह जन्म, यौवन, जरा और मृत्यु- की ही तरह प्रतिदिन होनेवाली एक सामान्य बात नहीं है ? ये सब तो जीवनसे सम्बन्धित आवश्यक परिवर्तन मात्र हैं । लेकिन खैर, यह तो अवसर निकल जानेके बाद उपदेश बघारना है। अगर मुझे खुद अपनी शादीकी उम्मीद होती तो शायद कुछ और तरहसे लिखता । लेकिन अगर शादी करनेका मेरा इरादा होता भी तो ऐसे कोई पागल या समझदार माता-पिता तो दिखाई नहीं देते जो मेरे साथ अपनी लड़कीका विवाह कर दें। इसलिए मैं विवाहोंपर अपना समय और पैसा बर्बाद करनेवाले नौजवान और बूढ़े लोगोंको बेखटके उपदेश पिला सकता हूँ। फिर भी, में इस सारी फिजूलखर्चीको माफ कर सकता हूँ, लेकिन शर्त यह है कि अगर सुहेलाके पति उसकी आजादीपर बन्दिशें लगानेकी कोशिश करें तो वह उन्हें ठीक ढंगसे ठंडा कर दे और अपने आदर्श चरित्रके बलपर लखनऊ तथा उसके आसपास के इलाकों में प्रचलित पर्देकी सड़ी-गली प्रथाको खत्म कर दे। और हाँ, वह खादीका प्रचार करे, यह तो उससे मेरी न्यूनतम अपेक्षा है ।

अब भी मैं स्वास्थ्य लाभ करने में लगा हुआ हूँ और अभी अगले दो महीने- तक मेरे दक्षिण भारतसे लौटने की संभावना नहीं है । इसलिए अभी तो आपके पास आकर आपसे गले मिलने, आपकी सफेद दाढ़ीपर हाथ फेरने और आपके साथ तमाम

  1. गांधीजी और तैयबजी सी तरह एक-दूसरेका अभिवादन किया करते थे ।