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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अहम व मामूली बातोंकी चर्चा करनेके लिए मुझे कुछ समयतक सत्र करना हो पड़ेगा। रेहानाको तो अब वह जिस तरह चाहे, उस तरहसे अपना विकास करने देना चाहिए ।

सबको मेरा स्नेह-वन्दन ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी,

अंग्रेजी (एस० एन० ९५५९) की फोटो नकलसे ।

३२. पत्र : देवेन्द्रनाथ मित्रको

कुमार पार्क,बंगलोर
२१ जून,१९२७

प्रिय भाई,

आपको खेती-बाड़ीके सम्बन्धमें सुझाव देनेकी बात तो मैं बिलकुल भूल ही गया था । इसके लिए क्षमा चाहता हूँ। मेरा विचार यह है कि जो भी सुधार करने हों, यदि वे दक्षिण आफ्रिकाके समान, किसानोंके खेतों में ही नहीं किये जाते और यदि गरीब किसान उनका लाभ नहीं उठा सकते तो फिर सफलताकी गति धीमी ही रहेगी । मेरे हालके अध्ययनसे मुझे यह बात अधिकाधिक आवश्यक लगती जा रही है कि राज्य लगभग सारे मवेशियोंका नियन्त्रण अपने हाथोंमें ले ले। मुझे लगता है कि अगर मवेशियोंकी समस्याको ठीक तरहसे हल नहीं किया जाता तो या तो हम धीरे-धीरे निष्ठुरतापूर्वक उन्हें समाप्त कर देंगे या फिर हम लोग ही समाप्त हो जायेंगे। जबतक स्थितिको भाग्य के भरोसे रहने दिया जायेगा तबतक तो मवेशी और हम हिन्दुस्तानके लोग दोनों इसी तरह तबाह होते रहेंगे । अनुपयोगी पशुओंके विनाशकी बातको मैं इस देशमें अव्यवहार्य और अपराधपूर्ण मानता हूँ । इसलिए हमें ऐसे पशुओंकी जिम्मेदारी अपने सिर लेकर उन्हें यथासम्भव अधिकसे-अधिक किफायतसे खिलाने-रखने के उपाय ढूंढ़ने चाहिए और उनसे खाद तथा उनके मरनेके बाद उनके चमड़े और हड्डियों आदिके रूपमें जो-कुछ लाभ प्राप्त कर सकते हों, प्राप्त करना चाहिए। हमें अच्छी नस्लके साँड़ोंके संयोगसे ही बछड़े उत्पन्न होने देने चाहिए। इसलिए मेरे विचारसे आपके फार्म में ठीक ढंगसे दुग्ध व्यवसाय और चमड़ा शोधने आदिके कारोबारकी पूरी सुविधा होनी चाहिए और उपयोग में न लाये जानेवाले तथा अनुपयोगी पशुओंके चारे और उनसे प्राप्त होनेवाली खादके तुलनात्मक मूल्य के सम्बन्धमें एकके-बाद-एक कई प्रयोग होने चाहिए। पता नहीं, पशु-समस्यापर 'यंग इंडिया ' में प्रकाशित मेरी लेखमाला आपने पढ़ी है या नहीं। बेशक, इस सम्बन्धमें