पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/७६

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३४. पत्र : विक्टर मोहन जोशीको

कुमार पार्क,बंगलोर

२१ जून,१९२७

प्रिय भाई,

छोटालालजी ने बताया है कि में अभीतक अल्मोड़ा नहीं गया हूँ, इससे आप दुःखी हैं। आप खादी-कार्यके बारेमें मुझे पर्याप्त प्रलोभन तो दीजिए फिर आप मुझे बंगलोरके बजाय अल्मोड़ामें ही स्वास्थ्य लाभ करते देखेंगे । बहरहाल, वहाँ प्रभुदास तो है ही और उसकी जो भी सार-संभाल की जायेगी वह ऐसे व्यक्तिकी सार-सँभाल होगी जो यदि जीवित रहा तो पूरी सम्भावना है कि राष्ट्रका सच्चा सेवक बनेगा ।

हृदयसे आपका,

विक्टर मोहन जोशी

अल्मोड़ा

अंग्रेजी (एस० एन० १४१६७) की फोटो नकलसे ।

३५. पत्र : डा० विधानचन्द्र रायको

कुमार पार्क,बंगलोर

२१ जून,१९२७


प्रिय डा० विधान,

आपका पत्र मिला । मैं 'यंग इंडिया' के स्तम्भोंमें अपील[१] की चर्चा करूंगा । मैं तो कहूँगा कि आप घर-घर जाकर चन्दा इकट्ठा करें। सच मानिए, इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है। अगर में वहाँ आ सकूं तो आपके साथ में भी इस तरह घर-घर चन्दा माँगने जाऊँ ।

मैं आपको और बासन्ती देवीको यहाँ आनेका निमन्त्रण नहीं दे सकता, क्योंकि मैं अभीतक एक हदतक खाटपर ही पड़ा हुआ हूँ और इधर-उधर नहीं आता-जाता । डाक्टरोंको आशा है कि में जुलाईके महीने में थोड़ी-बहुत यात्रा कर सकूंगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अगर में आपको आमन्त्रित करूँ तो आपको लेकर जगह- जगह जाने लायक शक्ति मुझमें आ जायेगी। उसके लिए तो जब मैं बंगाल आऊँ तब आपको ही मुझे शक्ति देनी पड़ेगी । मगर जाने, वहाँ कभी आ भी पाता हूँ या नहीं ।

  1. देखिए. “ चित्तरंजन सेवा सदन", ३०-६-१९२७ ।